शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

अख़बार नहीं जूता निकालो

बहुत दिनों के बाद पोस्ट कर रहा हूँ। पिछले दिनों एक घटना हुई जिसने मीडिया के लोगो को सोचने का एक मौका दिया। कि क्या अब 'तोप यदि मुकाबिल हो तो अख़बार की जगह जूता निकाला जाए'| इसे हम पत्रकारिता के एथिक के खिलाफ मान सकते हैं । लेकिन यह भी सचाई है कि जिस तरह से मीडिया हाउस ताक़तवरों के हाथों की कठपुतली बनता जा रहा है, ऐसे समय में पत्रकारों को जूता ही निकालना पड़ेगा ।