शुक्रवार, 31 मई 2013

हिंदी पत्रकारिता स्‍तरीय हीन क्‍यों

मालिक कम पैसे देना चाहता है तो वह ऐसे व्‍यक्ति को पत्रकार बना देता है जो मूलतया पत्रकार नहीं होता उसका पढने लिखने से नहीं बल्कि मालिक को खुश करने से मतलब होता है और मालिक कम संपादक भी उसकी स्‍टोरी को प्रमुखता से छाप कर पढे लिखे पत्रकार को करारा जवाब देने की कोशिश करता है, मालिक  यह दर्शाना चाहता है कि वह चाहे तो गधे तो भी पत्रकार बना सकता है। बस यहीं से शुरू होता है हिंदी पत्रकारिता का दुर्भाग्‍य, जो सालों साल से चल रहा है ।

शनिवार, 4 मई 2013

हम हो रहे हैं इस्‍तेमाल

सनाउल्‍ला भारत में बम धमाके के आरोप में भारत में बंद था और सरबजीत लाहौर में बंद धमाके के आरोप में पाक में बंद था। भारत की पुलिस ने सनाउल्‍ला को सही पकडा था, लेकिन पाक पुलिस ने सरबजीत को गलत ढंग से पकडा था। भारत की पुलिस कभी गलत नहीं होती, लेकिन पाकिस्‍तान पुलिस हमेशा बेकसूर भारतीयों को पकड कर बंद कर देती है। भरतीय पुलिस आप को चलती गाडी में रोक दे तो भ्रष्‍ट है। आपको चोरी के इल्‍जाम में पकड ले तो भारतीय पुलिस गंदी है, लेकिन पाकिस्‍तानी को पकड ले तो बिल्‍कुल सही है। 
भाई लोगों, ये दो सरकारों के बीच का मामला है और आप लोग टूल बने हुए हैं। दोनों सरकारें आप लोगों को टूल बना कर रखना चाहती हैं ताकि वे लोग आप की भावना को भडका कर अपनी सत्‍ता में बने रहें। बेशक सरकार किसी भी पार्टी की आए। 
सरकार ने पहले सरबजीत को इस्‍तेमाल किया और अब पूरे देश के लोगों को इस्‍तेमाल कर रही है। इसे खर्च करना भी कहा जाता है। इसी तरह पाक सरकार ने सनाउल्‍ला को इस्‍तेमाल किया। दोनों ओर से जानें जा रही है, केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए ...।