शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

नेता जी का पलायन

फकीर फरीदाबादी / राजू सजवान

'अच्छा! रात को भी बिजली जाती है। हमें तो पता ही नहीं चलता। इंवर्टर जो लगा हुआ हैÓ। नेता जी खीसे निपोरते हुए बोले।
बाबा का दिमाग भन्ना गया। वैसे ही बिजली न होने के कारण कई रातें जाग कर बिताने के कारण दिमाग का बैंड बजा पड़ा था। वह लगभग चिल्लाते हुए बोले- 'यह कोई अच्छी बात नहीं है, यह सरासर पलायन है। आप लोग (नेता) संघर्ष से पलायन कर रहे हैं। मौजूदा व्यवस्था को बदलने की बजाय विकल्प का रास्ता अपना रहे हैं। आपको संघर्ष करना चाहिए। रात को बिना बिजली के जनता कैसे रहती है, इसका अहसास करना चाहिएÓ। समाजवाद की सीख देते-देते बाबा को ऐसी खांसी उठी कि आंखों से आंसू निकल आए।
नेता जी काफी पके हुए थे। चेहरे पर बिना कोई भाव लाए पहले बाबा को पानी पिलवाया। फिर बोले- 'बाबा आप तो जानते ही हैं कि मैं सत्ता में नहीं हूं, जनता मुझे हरा चुकी हैÓ। बाबा की आवाज नहीं निकली, पर दबी आवाज में बोले- 'इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपनी जिम्मेवारी से भागेंगे। आप हारे हुए नेता नहीं हैं, आप विपक्ष हैं। विपक्ष का काम जनता के हितों के लिए संघर्ष करना है। विपक्ष के संघर्ष की वजह से ही सत्ताधारी सही काम करते हैंÓ।
'हमने कब संघर्ष से मना किया है, लेकिन अभी हमारे संघर्ष का वक्त नहीं आया। अभी तो जनता को 'अहसासÓ होना चाहिए कि उन्होंने जिस पार्टी को सत्ता सौंपी है, वह क्या कर रही है? अभी हमारा ध्यान अपने धंधे की ओर है। वैसे भी प्रापर्टी के काम में इतना उछाल है कि संघर्ष-वंघर्ष के लिए फुर्सत ही नहीं मिलती। इसके अलावा और भी बहुत से धंधे हैं, जब ये धंधे चलेंगे तब ही तो पांच साल बाद इलेक्शन लड़ पाऊंगा। जहां तक रही, संघर्ष की बात, संघर्ष तो इलेक्शन छह महीने पहले करना चाहिए। वैसे भी, संघर्ष की वजह से तुम्हारे (बाबा) जैसे चंद बेवकूफ लोग ही वोट देते हैं, बाकी वोट तो तभी मिलती है, जब पांच साल का कमाया हुआ धन खर्च करने का माद्दा होÓ।
नेता जी कभी-कभी आत्मकथा का वाचन करते हैं। बाबा उनकी कथा सुनकर धन्य हुए। बाबा सोचने लगे- 'नेता जी जनता से अपनी हार का बदला लेना चाहते हैं, उन्हें अहसास (दुख) दिलाकर। तो फिर कौन सरकार से कहेगा कि बिजली जाने से बहुत परेशानी होती है। खासकर रात को। जनता ने जिन्हें अपना ठेकेदार बनाया, वे सब इतने अमीर तो हो ही गए कि इंवर्टर लगा लें और जनता के पास इतना समय नहीं कि वह अपनी दिहाड़ी छोड़ संघर्ष करेÓ।
- करीब 10 साल पहले लिखा गया एक व्यंग्य