मंगलवार, 15 दिसंबर 2015
सोचिए, बुरा आदमी कौन है
गुरुवार, 10 दिसंबर 2015
हम लड़ना जानते हैं
कुछ लोग लड़ना जानते हैं , हथियार चलाना नहीं
कुछ लोग हथियार चलाना जानते हैं, लड़ना नहीं
पर दोनों को जाने के बिना कोई लड़ाई नहीं जीती जाती
लेकिन ...
हर लड़ाई जीतने के लिये नहीं लड़ी जाती
लड़ी जाती है उन हथियारों के खिलाफ,
जो दिखते तो नहीं हैं
लेकिन चोट करते हैं सीधे सम्मान पर
किसी के पेट पर
किसी की जवान देह पर
ऐसे हथियारों को चलाने वालों को यह बताना जरूरी है
कि हम लड़ना जानते हैं ...
- यह कविता 10 दिसम्बर 2015 को लिखी गई. इससे एक दिन पहले "विद्रोही" की मौत हुई. विद्रोही को मैं ज्यादा नहीं जानता . लेकिन उनकी मौत के बाद सोशल मीडिया पर पढी कुछ कविताओं विद्रोह का एक भाव पैदा किया . जिसने इस रचना को जन्म दिया . धन्यवाद विद्रोही
रविवार, 29 नवंबर 2015
सेल्फी से उठते सवाल
सोमवार, 19 अक्तूबर 2015
शनिवार, 17 अक्तूबर 2015
आज के अच्छे दिन की अच्छी खबर
- रिलायंस इंडस्ट्रीज ने जुलाई-सितंबर माह में 6720 करोड़ रुपये का
मुनाफा कमाया है। http://money.bhaskar.com/news/MON-MARK-STMF-ril-beats-estimates-to-record-pat-of-rs-6720-cr-in-q2-5143251-NOR.html
कुछ और अच्छी खबरों के लिए इंतजार कीजिए
शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015
आज के अच्छे दिन की अच्छी खबर
* डीजल 90 पैसे महंगा हुआ, शुक्र मनाइए कि पेट्रोल महंगा नहीं हुआ
* अदाणी ग्रुप को आस्ट्रेलिया सरकार ने इंवायरमेंट अप्रूवल दिया
* सीबीआई कोर्ट ने कहा है कि वर्ष 2002 में कोई स्पेक्ट्रम घोटाला नहीं हुआ। 12 साल बाद मिली इस जीत को एयरटेल, वोडाफोन और एक कोई पूर्व सचिव को बधाई ___
शुक्रवार, 28 अगस्त 2015
रविवार, 23 अगस्त 2015
उसका बोझ
और उसकी भी
फर्क इतना है कि
उसके कंधों पर किताबों का बोझ है
और इसके कंधों पर
अपने परिवार का
उसका बोझ तो शायद उसका भविष्य बना दे
लेकिन इसका भविष्य
इस बोझ तले दबना तय है ...
रविवार, 29 मार्च 2015
आप से उम्मीद ...
आम आदमी पार्टी में जो भी कुछ हो रहा है, शायद इस बात का अंदेशा मुझे पहले से था
और यही वजह थी कि मैं भी योगेंद्र यादव की ही तरह चाहता था कि आप हार जाए। हालांकि मैंने योगेंद्र की तरह उन्हें हारने की कोई कोशिश नहीं की, क्योंकि मेरी बिसात भी नहीं थी, लेकिन मुझे इस बात का आभास हो चला था कि इस बार आम आदमी पार्टी जीत गई तो पार्टी का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। मात्र दो साल के राजनीतिक सफर के बाद सत्ता में पहुंची आम आदमी पार्टी ने 49 दिन बाद त्यागपत्र दिया तो उसके पीछे अरविंद केजरीवाल का त्याग दिखाई दिया, परंतु लोकसभा चुनाव में हार के बाद जिस तरह अरविंद ने व्यवहार किया, उससे लगा कि अरविंद फिर से दिल्ली की सत्ता चाहते हैं। उसके लिए उन्होंने पार्टी के सिद्धांत को ताक पर रखकर कई ऐसे लोगों को टिकट बांटी, जो कहीं से भी आप के ढांचे में फिट होते नहीं दिखते थे। उन्हें देखकर लगता था कि अरविंद हर हाल में दिल्ली में सत्ता में आना चाहते हैं और वह आ भी गए।
सच्चाई यह है कि अरविंद एक ब्रांड मेकर हैं और उन्होंने खुद को ऐसे ब्रांड के रूप में पेश किया, जिसके बूते उन्होंने राजनीतिक इतिहास में झंडे गाड़ दिए। अरविंद ईमानदार भी हो सकते हैं, लेकिन ब्रांड के रूप में स्थापित होने की ललक में उन्होंने जो कुछ किया, वह पूरी तरह सही है, इससे कम से कम मैं इतफाक नहीं रखता।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर मैं और योगेंद्र यादव या प्रशांत भूषण क्यों चाहता थे कि पार्टी हार जाए। योगेंद्र और प्रशांत की बात तो मैं नहीं जानता, लेकिन मैं अपनी बात बता सकता हूं। मेरा मानना था कि पार्टी में बहुत से लोग ऐसे थे, जो केवल सत्ता का सुख पाने के लिए पार्टी और अरविंद से चिपके हुए हैं, जिन्हें उस विचारधारा या सिद्धांत से कोई लेना देना नहीं था, जिसका प्रचार आप और अरविंद कर रहे थे। ऐसे में यदि आप हार जाती तो ये लोग छिटक जाते और सही मायने में पार्टी के सिद्धांत पर विश्वास रखने वाले लोग ही पार्टी में रह जाते, इससे पार्टी वैचारिक स्तर पर और मजबूत होती और इसके बाद पार्टी में ठोस कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ती। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि पार्टी तप कर सोने में तब्दील होती।
मैं आप का शुभचिंतक था और अभी भी हूं। इसकी वजह यह है कि राजनीति में जो प्रयोग हुआ, उससे एक संभावना दिखी थी, मैं इस संभावना को इतनी जल्दी मरने नहीं देना चाहता। लेकिन अरविंद ने प्रशांत, योगेंद्र और आनंद कुमार जैसे लोगों के साथ जो किया, वह गलत है, परंतु अरविंद अब दिल्ली की जनता से जो करने वाले हैं, वह मेरे लिए ज्यादा महत्व रखता है। यदि अरविंद दिल्ली की जनता को एक बेहतर और अच्छी सरकार दे पाएं तो मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।
मंगलवार, 17 मार्च 2015
नमक हराम केजरीवाल !
आज की सबसे बड़ी ख़बर ...
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने आज नमक नहीं खाया है। जी हाँ ... केजरीवाल ने आज देश का नमक नहीं खाया है।
यह बड़ी खबर आ रही है कौशाम्बी से। कि केजरीवाल, जो देश का प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं और अभी देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं ने देश का नमक नहीं खाया है।
इस पर होगी, आज की सबसे बड़ी बहस।
कांग्रेस और बीजेपी के प्रवक्ता स्टूडियो पहुँच चुके हैं। दो वरिष्ठ पत्रकार भी हमारे साथ होंगे। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता भी हमसे जुड़ने वाले हैं।
लेकिन पहले जानते हैं क्या है पूरी खबर...।
सीधे चलते हैं कौशाम्भी, जहाँ हमारे संवाददाता कुमार, केजरीवाल के घर के बाहर खड़े हैं।
जी, कुमार । क्या है पूरी खबर...?
जी, मनीशा। एक तो हम ये बता दें कि हम केजरीवाल के घर के बाहर नहीं खड़े हैं, क्योंकि हमें वहां खड़े नहीं होने दिया गया।
हम इससे पहले अपनी सबसे बड़ी खबर में बता चुके हैं कि केजरीवाल ने किस तरह देश और दिल्ली के लोगों से झूठ बोला कि वह सिक्योरिटी नहीं लेंगे। वह सिक्योरिटी ले रहे हैं ...
जी कुमार हम समझ सकते हैं की इन सिक्योरिटी वालों की वजह से आपको कितनी परेशानी हो रही है और हम केजरीवाल के इस झूठ का खुलासा भी कर चुके हैं,लेकिन इस समय की बड़ी खबर क्या है और आपको कहाँ खड़ा होना पड़ रहा है ?
जी मनीशा। हम इस समय कौशाम्भी मेट्रो स्टेशन के बाहर खड़े हैं।
यहाँ हमारे साथ खड़े हैं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पड़ोसी...।
जी, आप कह रहे थे कि केजरीवाल ने आज नमक नहीं खाया है।
जी नहीं। मैंने ये नहीं कहा कि उन्होंने नमक नहीं खाया। मैंने ये कहा कि मेरे फ्लैट का किचेन उनके किचेन से लगा हुआ है और आज रोजाना की तरह सुबह से उनके किचेन से छौंक की खुशबू नहीं आयी है।
जी, मनीषा सुना आपने ...। आज की बड़ी खबर। आज केजरीवाल के किचन में सब्जी नहीं बनी है और केजरीवाल सचिवालय के लिए घर से निकल चुके हैं। मतलब साफ है। आज केजरीवाल ने नमक नहीं खाया है।
शुक्रिया कुमार...। आप हमारे साथ बने रहिएगा और अपना ख्याल रखिएगा।
....तो हम अपने दर्शकों को बता दें कि जिस नमक को खा कर आप गर्व महसूस करते हैं। गरीब यानी आम आदमी जिस नमक के बिना जी नहीं सकता। जिस देश का नमक खा कर जवान नमक का कर्ज चुकाने की कसम खाते हैं। वही नमक, देश का नमक केजरीवाल ने नहीं खाया है। इस पर हम अपने मेहमानों से चर्चा करेंगे।
एक ब्रेक के बाद ...।
बड़ी खबर के प्रायोजक हैं "टाटा नमक, देश का नमक"
- राजू सजवान (डिस्क्लमेर :- मुझे किसी का आदमी ना समझा जाये। मेरी पत्नी मुझे अपना आदमी समझती है, जो किसी के साथ बाँट नहीं सकती)
शुभ विजयादशमी
जानता हूँ कि कभी नहीं मरेगा मेरे भीतर का रावण
पर मैं अपने भीतर का राम भी कभी नहीं मरने दूंगा
शुभ विजयदशमी ...
बुधवार, 4 मार्च 2015
मंगलवार, 3 मार्च 2015
एक कविता
आज की बात पर बात होनी थी
कल की बात पर बात बिगड़ गई
हल होने थे जो मसले, मिसाल बन गए
उलझे उन पर ऐसे, कि तलवारें निकल गई
एक ईंट मस्जिद की उसने उठाई
एक ईंट मंदिर की मैंने चुराई
बनाना था घर, उनको जोड़ कर
तब तक खद्दर की कई बाजुएं चढ़ गई
जिस जमीं को सींच कर
खून से अपने
पालता था बच्चों का पेट
आज न जाने उस जमीन पर
किस सेठ की नजर लग गई
- राजू सजवान
शनिवार, 28 फ़रवरी 2015
नेता जी का पलायन
'अच्छा! रात को भी बिजली जाती है। हमें तो पता ही नहीं चलता। इंवर्टर जो लगा हुआ हैÓ। नेता जी खीसे निपोरते हुए बोले।
बाबा का दिमाग भन्ना गया। वैसे ही बिजली न होने के कारण कई रातें जाग कर बिताने के कारण दिमाग का बैंड बजा पड़ा था। वह लगभग चिल्लाते हुए बोले- 'यह कोई अच्छी बात नहीं है, यह सरासर पलायन है। आप लोग (नेता) संघर्ष से पलायन कर रहे हैं। मौजूदा व्यवस्था को बदलने की बजाय विकल्प का रास्ता अपना रहे हैं। आपको संघर्ष करना चाहिए। रात को बिना बिजली के जनता कैसे रहती है, इसका अहसास करना चाहिएÓ। समाजवाद की सीख देते-देते बाबा को ऐसी खांसी उठी कि आंखों से आंसू निकल आए।
नेता जी काफी पके हुए थे। चेहरे पर बिना कोई भाव लाए पहले बाबा को पानी पिलवाया। फिर बोले- 'बाबा आप तो जानते ही हैं कि मैं सत्ता में नहीं हूं, जनता मुझे हरा चुकी हैÓ। बाबा की आवाज नहीं निकली, पर दबी आवाज में बोले- 'इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपनी जिम्मेवारी से भागेंगे। आप हारे हुए नेता नहीं हैं, आप विपक्ष हैं। विपक्ष का काम जनता के हितों के लिए संघर्ष करना है। विपक्ष के संघर्ष की वजह से ही सत्ताधारी सही काम करते हैंÓ।
'हमने कब संघर्ष से मना किया है, लेकिन अभी हमारे संघर्ष का वक्त नहीं आया। अभी तो जनता को 'अहसासÓ होना चाहिए कि उन्होंने जिस पार्टी को सत्ता सौंपी है, वह क्या कर रही है? अभी हमारा ध्यान अपने धंधे की ओर है। वैसे भी प्रापर्टी के काम में इतना उछाल है कि संघर्ष-वंघर्ष के लिए फुर्सत ही नहीं मिलती। इसके अलावा और भी बहुत से धंधे हैं, जब ये धंधे चलेंगे तब ही तो पांच साल बाद इलेक्शन लड़ पाऊंगा। जहां तक रही, संघर्ष की बात, संघर्ष तो इलेक्शन छह महीने पहले करना चाहिए। वैसे भी, संघर्ष की वजह से तुम्हारे (बाबा) जैसे चंद बेवकूफ लोग ही वोट देते हैं, बाकी वोट तो तभी मिलती है, जब पांच साल का कमाया हुआ धन खर्च करने का माद्दा होÓ।
नेता जी कभी-कभी आत्मकथा का वाचन करते हैं। बाबा उनकी कथा सुनकर धन्य हुए। बाबा सोचने लगे- 'नेता जी जनता से अपनी हार का बदला लेना चाहते हैं, उन्हें अहसास (दुख) दिलाकर। तो फिर कौन सरकार से कहेगा कि बिजली जाने से बहुत परेशानी होती है। खासकर रात को। जनता ने जिन्हें अपना ठेकेदार बनाया, वे सब इतने अमीर तो हो ही गए कि इंवर्टर लगा लें और जनता के पास इतना समय नहीं कि वह अपनी दिहाड़ी छोड़ संघर्ष करेÓ।
- करीब 10 साल पहले लिखा गया एक व्यंग्य