रविवार, 29 नवंबर 2015

सेल्‍फी से उठते सवाल



फिर से पत्रकारों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सेल्‍फी खिंचाने पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठना भी लाजिमी है। क्‍योंकि सवाल यह नहीं है कि आप किसी शख्सियत के प्रशंसक हैं तो क्‍या आप उस व्‍यक्ति के साथ सेल्‍फी नहीं ले सकते। या आपके सामने कोई ऐसा व्‍यक्ति आ जाता है, जिसके चर्चे दुनिया भर में हैं तो आप चाहते हैं कि उस व्‍यक्ति के साथ एक फोटो हो जाए। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन सवाल तब उठना लाजिमी है, जब आप एक आम आदमी, एक प्रशंसक के तौर पर उस शख्सियत के साथ सेल्‍फी खिंचाने लगते हैं। प्रधानमंत्री ने आपको आपकी व्‍यक्तिगत हैसियत को देखते हुए समारोह में बुलाया होता तो आप सेल्‍फी खिंचवा सकते थे, लेकिन आप केवल एक पत्रकार के तौर पर वहां गए थे, वरना तो प्रधानमंत्री आपका नाम भी नहीं जानते। इसलिए आपकी जिम्‍मेवारी अपने प्रति कम पत्रकारिता के प्रति अधिक है। और पत्रकार का धर्म है कि वह उस शख्सियत के बारे में जनता को बताए कि वह व्‍यक्ति कैसा दिखता है। जनता के बारे में क्‍या सोचता है। आपका कर्तव्‍य ( जी हां, उसी कर्तव्‍य की बात कर रहा हूं, जिसके बारे में एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने संसद में व्‍याख्‍यान दिया था) तब और आपको और अधिक कचोटता है, जब आपके समक्ष खड़ी शख्सियत, सरकार का मुखिया हो, जिसके कंधे पर पूरे देश की जिम्‍मेवारी है, बल्कि पूरे देश के प्रति जवाबदेही भी है। ऐसे में, आपको उस शख्सियत के आभा मंडल में प्रवेश करने की बजाय उससे कुछ चंद ऐसे सवाल करने चाहिए, जिसके जवाब में आपका पाठक, दर्शक या श्रोता जानना चाहता है। क्‍योंकि आप अपने पाठक या श्रोता को यही सर्विस देते हैं, जिसके एवज में वह आपको भुगतान करता है।