बुधवार, 17 अक्तूबर 2018

ईमानदारी पर शक



करीब दो महीने पहले की बात है। मैं अपनी स्‍कूटी से ऑफिस से आ रहा था। नोएडा से फरीदाबाद तक का लगभग 45 किलोमीटर का सफर। रात के लगभग साढ़े दस बज चुके थे। घर से करीब 20 किलोमीटर दूर था क‍ि लगा स्‍कूटी पंचर हो गई है और एक ओर चल रही है। थोड़ा सा ही आगे गया था क‍ि एक पंचर वाला दिखाई दिया। वहां स्‍कूटी खड़ी की और वहां दो लड़के अंदर बिस्‍तर लगाकर लेटे हुए थे और अपने फोन पर लगे थे। मैंने उनसे बात की तो उन्‍होंने बताया क‍ि अब दुकान बंद हो चुकी है। काफी मनाने के बाद एक लड़का तैयार तो हो गया, लेकिन 50 की बजाय 100 रुपए में। मैं भी तैयार हो गया। मैंने उसे बताया क‍ि पीछे का टायर पंचर है। उसने खोलकर चेक किया तो पंचर नहीं मिला। जैसे ही उसने टायर चढ़ाया और मैं स्‍कूटी स्‍टार्ट करने लगा तो लगा क‍ि आगे का टायर पंचर है।

फिर से उसे मनाया। जेब में 200 रुपए थे, 100 उसे दे चुका है। उसने आगे का टायर खोला, चेक किया। मुझे लगा क‍ि पंचर तो नहीं है, लेकिन उसने कहा क‍ि दो पुराने पंचर हैं, जो लीक हो रहे हैं। मुझे लग रहा था क‍ि पंचर नहीं हैं, केवल हवा कम थी, लेकिन मैं अपने आप से ही संतुष्‍ट नहीं था। सोचा क‍ि एक बार फिर से उस 20 से 22 साल युवक को कहूं क‍ि वह मेरे सामने दोबारा पंचर चेक करे, लेकिन फिर लगा क‍ि ऐसा करने से वह युवक न जाने क्‍या सोचने लगे। कहीं, उसे यह लगने लगे क‍ि मैं उस पर शक कर रहा हूं। फिर फैसला लिया क‍ि अपने शक को पुख्‍ता करने के लिए उस पर शक नहीं किया जाना चाहिए। हो सकता है क‍ि वह सच्‍चा है और मेरे शक करने से उसे ठेस पहुंचे। इसलिए मैंने उसे बताया क‍ि मेरे पास अब 100 रुपए ही बचे हैं, लेकिन मैं 50 रुपए बाद में दे दूंगा। वह मान गया और दोनों पुराने पंचर उखाड़ कर नए लगा दिए। मैं वहां से आ तो गया, लेकिन दिमाग बार-बार टोकता है क‍ि मुझे बेवकूफ बना दिया। आप भी इसे मेरी बेवकूफी मान सकते हैं। हालांकि दिल के कहने पर मैं दो बार उसे 50 रुपए देने भी गया, लेकिन वह दुकान पर नहीं मिला।
दूसरा किस्‍सा जल्द ही ...

रविवार, 16 सितंबर 2018

उम्र से बाहर निकलिए, सुकून मिलेगा

मैं मेट्रो से उतरा और गेट की ओर बढ़ते हुए मेरा हाथ जेब में गया तो एक पर्ची हाथ लगी। देखा, फालतू पर्ची है। सोचा, डस्टबिन में डाल दूं, लेकिन अचानक मैंने उस पर्ची की गोल पुड़िया बना ली और उसे एक गेंद की तरह ऊपर उछाला। खुद भी उछलते हुए उस पर्ची को बैडमिंटन की शटल की तरह अपने से दूर फैंक दिया। कितनी दूर गई, यह देखा और उस पर्ची को सलीके से उठाया और डस्टबिन में डाल दिया।

मैं उस पर्ची को सलीके से डस्टबिन में भी डाल सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। जानते हैं, उस 1 से भी कम मिनट के समय में मैंने दो उम्र को जीने का प्रयास किया। करीब 5 से 10 सैकंड के लिए मैं 15 से 20 साल के अल्हड़ किशोर की उम्र में पहुंच गया। बिल्कुल उसकी तरह, मैंने एक पर्ची की पुड़िया बनाई और खेलने का प्रयास किया और उसके ठीक बाद मैं अपनी उम्र में पहुंच गया और सलीके से पर्ची को उठा कर डस्टबिन में डाल दिया।

मेरी हरकत आपको बेवकूफाना लग सकती है। अपनी उम्र से पीछे जाने की बेवकूफ कोशिश। लेकिन आप भी कभी ऐसा कीजिए। हो सकता है कि आप ऐसा करते भी हों, जोर-जोर से बच्चों की तरह हंसना। बच्चों के बीच बच्चा बनने की कोशिश करना। यह सब आप अपनी उम्र से पीछे जाने के लिए करते हैं। यह बहुत जरूरी है। अपने आप से निकलना, बेशक कुछ समय के लिए ही सही। लेकिन आपको अपने आप से निकलना चाहिए।

आप जिस पेशे में हैं, जिस ओहदे में हैं, उसे हमेशा ओढ़े रखना कोई समझदारी नहीं है। आप जब उम्र दराज हो जाते हैं तो उछलते-कूदते किशोर या युवा आपको अच्छे नहीं लगते। खासकर कोई लड़की हो तो आप इतने सामाजिक हो जाते है कि आपको लड़की की हंसी में बेशर्माई दिखाई देती है। उस समय कुढ़ने की बजाय सोचिए कि अगर आप भी उस उम्र में होते तो क्या करते। निकलिए अपने आप से बाहर, बेहद सुकून मिलेगा।


आपको अपने से कम ओहदे का आदमी भी नहीं सुहाता। उसकी मस्ती आपको परेशान कर देती है। उसके काम करने का तरीका आपको नहीं भाता। लेकिन कुछ देर के लिए आप अपने ओहदे से बाहर निकलिए, उसके जैसा होने का प्रयास कीजिए। थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन आपको लगेगा कि आप हल्के हुए हैं।
#फ्री_का_ज्ञान 

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

#फ्री_का_संपादक 3

#फ्री_का_संपादक

12 सितंबर 2018 के अखबारों में छपी कि हरियाणा सरकार ने बिजली के दाम कम कर दिए हैं। कुछ अखबारों का शीर्षक था, हरियाणा में दिल्ली से सस्ती हुई बिजली। दसअसल, यह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्‌टर की  घोषणा पर आधारित एक खबर थी, जिससे ऐसा लग रहा था कि हरियाणा सरकार ने कीमतें कम कर दी हैं। इस खबर में यह भी कहा गया था कि पहली बार बिजली निगम को 200 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है। लेकिन खबर लिखते या संपादित के वक्त यह ध्यान नहीं रखा गया कि आखिर सरकार यह फैसला कैसे ले सकती है।

देश में इलेक्ट्रिसटी एक्ट 2003 के तहत सभी प्रदेशों में बिजली निगम या कंपनियां बिजली उत्पादन, वितरण और आपूर्ति करती हैं। बिजली की दरों का निर्धारण राज्यों में बने बिजली नियामक आयोग करते हैं। तो कैसे सरकार कीमतें कम करने की घोषणा कर सकती हैं? यह सवाल इस खबर में पूछा ही जाना चाहिए था।

अगले दिन यानी 13 सितंबर के अखबार में यह बताया गया कि हरियाणा सरकार बिजली निगमों को 600 करोड़ रुपए की सब्सिडी देंगी, जिससे लोगों के पास जो बिल पहुंचेंगे, उनमें सब्सिडी घटा कर भेजा जाएगा। दरअसल, यही खबर थी, जिसे उसी दिन यानी कि मुख्यमंत्री की घोषणा के साथ ही लिखा जाना चाहिए था कि लोगों के बिजली के बिल कम करने के लिए सरकार सब्सिडी देगी। ऐसा ही, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार करती है। बिजली की दरों का निर्धारण करना या सरचार्ज लगाना-कम करना सरकार का काम नहीं है। इस खबर में यह भी बताया जाना चाहिए था कि चूंकि सब्सिडी पब्लिक मनी है तो जनता का पैसा ही जनता को लौटाया जा रहा है। ऐसे में, बिजली निगमों को हो रहे 200 करोड़ रुपए के फायदे पर सवाल उठाए जा सकते थे। 

मंगलवार, 10 जुलाई 2018

भारत और उसके विरोधाभास




मैं बड़े उत्‍साह से शनिवार को साहित्‍य अकादमी के सभागार पहुंचा। घड़ी के मुताबिक लेट नहीं था। 6.30 बजने वाले थे। अंदाजा था कि भीड़ होगी, इसलिए पैदल लेकिन तेज-तेज कदमों से साहित्‍य अकादमी पहुंचा। अमृत्‍य सेन और ज्‍यां द्रेज की पुस्‍तक 'भारत और उसके विरोधाभास' का विमोचन होना था। पहले से ही अर्थशास्‍त्र में थोड़ी बहुत रुचि और पिछले कुछ सालों से आर्थिक पत्रकारिता से जुड़ा होने के कारण बेहद बेसब्री से देखना चाहता था कि आखिर दुनिया के बड़े अर्थशास्त्रियों में सम्‍मलित अमृत्‍य सेन और ज्‍यां द्रेज ने अपनी इस किताब में क्‍या लिखा है। अकादमी पहुंचा तो देखा, सभागार के बाहर कमरे में एक बड़ी सी स्‍क्रीन लगाई गई है। सभागार पूरी तरह से भर चुका था, लेकिन दो बड़े अर्थशास्त्रियों और वर्तमान काल के हिंदी पत्रकारिता के बड़े नाम रवीश कुमार को सुनने का मोह था, इसलिए एक कोना पकड़ कर चुपचाप खड़ा हो गया।

कुछ देर बाद कार्यक्रम शुरू हुआ। स्‍क्रीन पर तस्‍वीरें तो साफ थी, लेकिन आवाज नहीं आ रही थी। बहुत कम आवाज के कारण कुछ देर सुनने की कोशिश करता रहा, लेकिन इस उम्‍मीद से कि बाद में वीडियो देखकर सही ढ़ंग से सुनूंगा, वहां से निकल लिया, लेकिन किताब लेना नहीं भूला। राजकमल प्रकाशन की इस किताब का मूल्‍य 399 रुपए रखा गया था। कार्यक्रम में जाने से पहले ही फ्लिपकार्ट में मिल रही छूट के बारे में पता कर लिया था, लेकिन जब पता चला कि कार्यक्रम में मिल रही छूट फ्लिपकार्ट से अधिक है तो किताब तुरंत लपक ली।

घर आते-आते मेट्रो में किताब की भूमिका पढ़ने लगा तो पता चला कि किताब का अंग्रेजी संस्‍करण 2013 में छप चुका है और 2018 में हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुआ है। हालांकि यह तो कार्यक्रम में जाने से पहले ही पता लग चुका था कि यह अंग्रेजी किताब का हिंदी संस्‍करण है, लेकिन यह नहीं मालूम था कि अंग्रेजी संस्‍करण पांच साल पहले छप चुका है। यह जानते ही बेहद निराशा हुई। वजह थी कि कहा जा रहा है कि 2014 के बाद तेजी से भारत की आर्थिक नीतियों में बदलाव हुआ है। मैं यही पढ़ना चाहता था कि अमृत्‍य सेन और ज्‍यां द्रेज की इस किताब में उन नीतियों के बारे में क्‍या लिखा है। लेकिन किताब के पहले लगभग सवा तीन पृष्‍ठों पर वर्तमान दौर का भी जिक्र किया गया है। और अगले आठ पृष्‍ठों में किताब की भूमिका बांधी गई है, जिसमें 2013के पहले हालातों के बारे में बताया गया है। मुझे हैरानी इस बात पर हुई कि 2013 में लिखे गए इन आठ पृष्‍ठों और अगस्‍त 2017 में हिंदी संस्‍करण की भूमिका पर लिखे गए सवा तीन पृष्‍ठों में हालात समान दिखाए गए हैं। केवल नोटबंदी को छोड़ दें, जिसे इन गलत बताया गया है तो बाकी 2013 से पहले लिए गए फैसलों और 2017 से पहले लिए गए फैसलों में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई दिया।
यानी कि इन दोनों अर्थ शास्त्रियों की नजर में, चाहे मोदी सरकार हो या मनमोहन सरकार आर्थिक नीतियां नहीं बदली हैं। ये नीतियां मजदूर विरोधी हैं, गरीब विरोधी हैं और एक वर्ग विशेष को खुश करने वाली हैं। इसलिए किताब को पढ़ने की इच्‍छा बची हुई है।

शेष पूरी किताब पढ़ने के बाद ...


गुरुवार, 10 मई 2018

वालमार्ट आ गया, जोशी जी...


आज दिन भर वालमार्ट पर कई खबरें चली, जब भी वालमार्ट का जिक्र आता, तब ही मेरी आंखों के सामने एक बुजुर्गवार का चेहरा घूमने लगता। बात दिल्‍ली विधानसभा चुनाव की है। मैं दिल्‍ली बीजेपी कवर करता था। दिल्‍ली बीजेपी द्वारा चुनावी घोषणापत्र जारी करना था। घोषणा पत्र जारी करने के लिए प्रदेश बीजेपी ने केंद्र से अपने दिग्‍गज नेता को बुलाया था, मुरली मनोहर जोशी। उनका नाम ही उनका पूरा परिचय है।
चुनावी घोषणा पत्र जारी कर दिया गया, संवाददाता सम्‍मेलन चल रहा था। जोशी जी पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे। मेरी नजर घोषणा पत्र के लगभग आखिरी पेज पर पड़ी, जहां लिखा था कि दिल्‍ली में रिटेल कारोबार में एफडीआई की इजाजत नहीं दी जाएगी।
न जानें, मुझे क्‍या सूझा कि मैंने जोशी जी से सवाल पूछ लिया तो क्‍या दिल्‍ली में वालमार्ट नहीं आ पाएगा। (दरअसल, उससे कुछ दिन पहले ही दिल्‍ली के व्‍यापारी की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित पर दिल्‍ली में वालमार्ट का स्‍टोर खोलने की इजाजत देने का आरोप लगा चुके थे, शायद इसलिए मुंह से वालमार्ट निकल गया)
लेकिन मेरा सवाल सुनते ही जोशी जी बिफर पड़े। उनके साथ ही प्रदेश बीजेपी के नेता भी मेरे सवाल की लगभग हंसी उड़ाते हुए बोले, यह क्‍या सवाल है, बीजेपी तो हमेशा विदेशी कंपनियों की विरोधी रही है। तब तक जोशी जी ने हवा में हाथ लहराते हुए प्रदेश नेताओं को चुप कराते हुए कहा, हमारा साफ-साफ एजेंडा है कि विदेशी कंपनियों को भारत में नहीं आने देंगे।
लगभग सब लोगों के एक सुर, जिनमें मेरे कुछ पत्रकार साथी भी शामिल थे ने मुझे झेंपने या यूं कहें कि शर्मिंदा होने के लिए विवश कर दिया। बल्कि जोशी जोशी जी के हिकारत भरा व्यहवार से खुद को अपमानित महसूस किया। ऐसा लगा कि सब भाजपाई ( जिनमें कुछ अपने साथी भी शामिल थे) मुझ से कह रहे हों, "बेवकूफ!! तुझे जरा भी समझ नहीं है, बीजेपी की, उसके एजेंडे की ..." उसके बाद मैं चुपचाप बैठ गया और खुद को इतने बड़े व्यक्तित्व से सवाल पूछने पर खुद को कोसने लगा। 
आज भी जोशी जी का अपमानित करता लहजा भूला नहीं हूं। 

खैर!!
इस घटना को बीते 4 साल से अधिक हो गए, अब न तो जोशी जी दिखते हैं और ना ही भाजपा का एजेंडा ...
फिर भी जोशी जी कहीं सुन रहे हैं तो सुन लें, वालमार्ट भारत पहुंच चुका है ...

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

खोटा


बड़ी खनक के साथ जो सिक्का
गिरा उसकी जेब से
हसरत से उठाया हमने
खोटा निकला
वादा था, दिल में जगह देंगे
पहुंचा जो पास
छोटा निकला
होंठों पे हंसी, गालों पे लाली
चूमा जो हमने
मुखौटा निकला
राजू सजवान. 30-4-2018

मजदूर दिवस


.... कल मजदूर दिवस है तो
............. तो क्‍या, पहली बार मजदूर दिवस आ रहा है। 70 साल से मजदूर दिवस नहीं आ रहा था। तुम लोग कहना क्‍या चाहते हों। मजदूरों की दशा के लिए हम लोग जिम्‍मेवार हैं। 70 साल तक तुम्‍हें मजदूरों की याद नहीं आई। तब तो तुम लोग चुप लगाए बैठे रहे। कोई कुछ नहीं बोला और आज चिल्‍ला रहे हैं, मजदूर दिवस है।
...... मेरी बात तो सुनिए
............... क्‍या सुनें, तुम्‍हारी, मतलब तेरी बात। तू है ही इस लायक। क्‍या हुआ, जो मजदूर दिवस है, तो तू अपनी ऐसी-तैसी करा ले। है मजदूर दिवस। कहना क्‍या चाहता है, हम पूंजीपति के साथ हैं, हमें मजदूरों की फिक्र नहीं है। जानता नहीं, हमने मजदूरों के लिए क्‍या कुछ नहीं किया, पर तू क्‍यों बताएगा। तू साले नैगेटिव माइंड, तुझे तो दिखता ही नहीं। हमने क्‍या-क्‍या नहीं किया। 70 साल से सड़ रहे लेबर एक्‍ट को नया किया। पीएफ एक्‍ट में बदलाव किया। पीएफ का ब्‍याज कम किया। सबके बैंक अकाउंट खुलवा दिए। अब तू कहेगा कि बैंकों में जमा पैसे तो फलां ले भागा। साले, वो भी तुम्‍हारा किया धरा है। अब हम उसके लिए भी नया कानून लाए हैं। पर तुझे क्‍यों दिखेगा यह सब...। साले, देशद्रोही कहीं के ...

रविवार, 11 मार्च 2018

बहरों का शहर

सुनते हैं कि
सुनी को अनसुनी कर देते हैं वो
फिर भी उन्हें सुनाओ तो सही
माना कि बहरों का शहर है ये
मगर जोर से चिल्लाओ तो सही

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

जेटली की जादूगरी, छोटों के नाम पर बड़ों को फायदा

अरुण जेटली जब साल 2018-19 का बजट पेश कर रहे थे तो नोटबन्दी और जीएसटी से त्रस्त छोटे कारोबारियों को उम्मीद थी कि अगले साल के चुनाव को देखते हुए मोदी सरकार उनके बारे में सोचेगी, लेकिन पूरा बजट भाषण खत्म हो गया, लेकिन छोटे कारोबारियों को कुछ नहीं मिला। हद तो तब हो गई, जब उनके नाम पर बड़े कारोबारियों को छूट दे दी गई। दरअसल, हुआ यह कि जेटली ने भाषण में कहा कि एमएसएमई सेक्टर के 250 करोड़ रूपये सालाना कारोबार करने वालों को कॉर्पोरेट टैक्स में 5 फीसदी छूट दी जाती है। पिछले साल बजट में 50 करोड़ रुपये सालाना टर्नओवर वालों को यह छूट दी गई थी।
तो बताइये कि जिस कम्पनी की टर्न ओवर 250 करोड़ हो, वह एमएसएमई कैसे हो सकता है। सरकार की अपनी परिभाषा बताती है कि मीडियम इंटरप्राइजेज उन्हें कहा जाता है, जिनमें अधिकतम इन्वेस्टमेंट 10 करोड़ रुपये होगा। क्या यह सम्भव है कि जिसने कुल इन्वेस्टमेंट ही 10 करोड़ का हो, वो व्यापारी 250 करोड़ सालाना कारोबार कैसे कर सकते हैं।
दूसरी जादूगरी यह कि यह छूट कंपनी को मिलेगी। तो बताइये कि छोटे कारोबारी प्राइवेट कम्पनी बना कर व्यापार करते हैं क्या ? कंपनी मतलब प्राइवेट लिमिटेड या लिमिटेड कंपनी । छोटे कारोबारी तो प्रोपराइटर या पार्टनरशिप कम्पनी के तौर पर काम करते हैं।
तो हकीकत यह है कि सरकार कॉरपोरेट को छूट दे रही है। हो सकता है कि अगली बार 250 करोड़ की जगह 2500 करोड़ टर्न ओवर वाली कम्पनी को छूट दे दी जाए।
इसमें बुराई भी नहीं है, लेकिन छूट सालाना टर्न ओवर की बजाय रोजगार देने वाली कंपनी को दी जानी चाहिए। 

सोमवार, 22 जनवरी 2018

'आप' के साथ सहानुभूति क्‍यों ?

दूसरे राज्‍यों में भी सरकारों ने विधायकों को लाभ का पद दिया हुआ है। यह कह कर हम 'आप' के साथ सहानुभूति जता सकते हैं। लेकिन, ऐसा साथ देकर हम 'आप' को वह सब करने की छूट कैसे दे सकते हैं, जो दूसरी पार्टियां भी कर रही हैं। 'आप' तो राजनीति बदलने आई थी। किसी तरह का लाभ न लेने का वादा किया था, फिर 20 एमएलए को लाभ का पद क्‍यों दिया गया है। अगर चुनाव आयोग ने 'आप' के 20 विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की है तो यह एक नजीर भी बन सकता है। बेशक अभी नहीं, लेकिन आने वाले दिनों में इस नियम के कारण सरकारें अपने विधायकों को लाभ का पद नहीं देंगी।