जम्बोद्वीप के एक राज्य के राजा अच्छे मल
का गुप्त कक्ष। कक्ष में राज्य के खजांची और महा मंत्री। राजा अच्छे मल का
प्रवेश। खजांची और महामंत्री ने स्वागत किया। राजा के बैठने के बाद महामंत्री भी
बैठ गए, लेकिन खजांची खड़े रहे।खजांची ने बोलना शुरू किया, ‘महाराज, राज्य
के खजाने की हालत ठीक नहीं है। खजाना खाली हो रहा है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था
बिगड़ रही है। जिन व्यापारियों ने खजाने से कर्ज लिया था, वे कर्ज वापस नहीं कर
रहे हैं। एक व्यापारी तो 70 हजार स्वर्ण मुद्राएं लेकर विदेश भाग गया है। मम्म्म्,
मेरा मतलब विदेश चले गए हैं। कई बड़े व्यापारी जितना कमा रहे हें, उसके हिसाब से
कर तक नहीं दे रहे हैं’।
खजांची चुप हुए तो महामंत्री ने बोलना शुरू
किया, ‘राज्य की जनता में अंसतोष फैल रहा है। यह बात जनता को पता चल चुकी है कि
बड़े व्यापारी न तो कर्ज वापस कर रहे हैं और ना ही कर दे रहे हैं। हमें सबसे पहले
जनता को शांत करना होगा, वरना विद्रोह हो सकता है’।
राजा ने खजांची की ओर देखा। खजांची ने सुझाव
देते हुए कहा, ‘हमें सबसे पहले बड़े कर चोर व्यापारियों पर दबाव बनाना होगा कि वह
राज्य का पैसा दें। इस पैसे से हम कई जनहित के कार्य करा सकते हैं, जिससे जनता का
गुस्सा शांत हो सके। इसके बाद हमें व्यापारियों से कर्ज वापस लेना चाहिए। इससे
राज्य की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी’।
- ‘लेकिन महाराज’, महा मंत्री ने टोकते हुए
कहा- ‘ बड़े व्यापारियों पर दबाव बनाना ठीक न होगा। व्यापारियों ने राज्य का
समय-समय पर बहुत सहयोग किया है’।
महाराज गहरी सोच में डूब गए। खजांची और
महामंत्री ने चुप्पी साध ली। दोनों को महाराज की बुद्धि और विवेक पर पूरा भरोसा
था। लेकिन काफी देर तक चुप्पी के बाद राजा अच्छे मल उठे और बिना कुछ कहे अपने शयन
कक्ष की ओर चले गए।
अगले दिन फिर से गुप्त मंत्रणा के लिए बैठक
बुलाई गई। इस बार राजा जी पहले से कक्ष में मौजूद थे। महामंत्री और खजांची ने
पहुंच कर राजा जी को प्रणाम किया और चुपचाप बैठ गए। दो मिनट की चुप्पी के बाद
राजा जी ने बोलना शुरू किया। ‘हमारा
निर्णय है कि हम राज्य में नई मुद्राएं चलाएंगे’। महामंत्री और खजांची ने आश्चर्य
से राजा जी की ओर देखने लगे, लेकिन प्रश्न पूछने की हिम्मत न जुटा पाए।
‘आप सोच रहे होंगे कि इससे क्या होगा’। राजा
जी ने उनके आंखों में तैर रहे सवाल को पढ़ते हुए कहा- ‘इससे एक तीर से दो शिकार
किए जाएंगे। हम कल जनता को संबोधित करते हुए कहेंगे कि बड़े व्यापारियों ने कर
चोरी की मुद्राएं कहीं छुपा दी हैं। इसलिए हम नई मुद्रा का चलन शुरू कर रहे हैं,
ताकि बड़े व्यापारियों की वे मुद्राएं मिट्टी साबित हो जाएं और जनता से अपील की
जाएगी कि जिनके पास पुरानी मुद्राएं हैं, वे खजाने में जमा करा दें। उनकी जगह खजाने
से नई मुद्राएं जारी की जाएंगी।
‘लेकिन महाराज, इतनी नई मुद्राओं का इंतजाम
करना आसान नहीं होगा’। इस बार खजांची ने हिम्मत करके सवाल किया।
‘हमें मालूम है’। राजा अच्छे मल ने जवाब
दिया। ‘हम कौन सा जनता को उसकी सारी मुद्राएं लौटाएंगे। हम उनसे कहेंगे कि मुद्रण
कार्य चल रहा है, तब तक जनता को थोड़ी-थोड़ी मुद्राएं लौटाई जाएंगी। इसका फायदा यह
होगा कि राज्य का खजाना जनता से ली गई मुद्राओं से भर जाएगा। खजाने भरने से हम कई
कार्य करेंगे, जिससे लगे कि हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से विकास कर
रही है। हमारी विकसित होती अर्थव्यवस्था को देखकर दूसरे राज्यों से हमें कर्ज
मिल सकता है। रही बात जनता की मुद्राओं की तो हम राज्य के कर की कटौती करके शेष मुद्राएं
थोड़े अंतराल में लौटा देंगे।
लेकिन महाराज, इसका दूसरा लाभ क्या होगा। इस
बार महामंत्री ने सवाल किया।
राजा जी ने गर्व से सिर उठाते हुए कहा, ‘ इसका
दूसरा फायदा यह होगा कि जनता कई दिनों तक कतारों में खड़े होकर अपनी मुद्राएं
खजाने में जमा कराएगी। इससे उसकी व्यस्तता बढ़ जाएगी और वह राज्य विरोधी बातें
सोचने का वक्त ही नहीं मिलेगा’।
‘लेकिन महाराज, इससे असंतोष बढ़ जाएगा’। महामंत्री
ने फिर हिम्मत की।
चिंता मत करो महामंत्री, नहीं बढ़ेगा असंतोष।
राजा ने पूरे विश्वास के साथ कहा- ‘हम अपनी जनता की मानसिकता जानते हैं। वह अपने
दुख से दुखी नहीं, बल्कि दूसरे के सुख से दुखी है। जब हम कहेंगे कि मुद्राओं का
चलन बंद होने से बड़े व्यापारी दुखी हो जाएंगे तो जनता बड़े व्यापारियों के दुख के
बारे में सोच-सोच कर अपने दुख भूल जाएगी। फिर हम जनता को यह भी समझाएंगे कि पड़ोसी
राज्य नकली मुद्राएं छाप कर हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था को खोखला करना चाहते
हैं तो जनता को हमारे इस फैसले पर गर्व होगा।
इस सारी कहानी में खजांची को बड़े व्यापारी
कहीं नहीं दिखे तो फिर उसने सवाल कर ही दिया- ‘पर महाराज, बड़े व्यापारी अपनी
मुद्राएं खजाने में जमा कराएंगे’।
नहीं, क्योंकि उनके पास मुद्राएं हैं ही
कहां। व्यापारी तो व्यापार के सिलसिले में एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते
रहते हैं। वे अपनी मुद्राओं से हर राज्य में अपने लिए महल, जमीन, स्वर्ण आभूषण खरीद
चुके हैं। इसलिए हमें उनकी चिंता नहीं करनी चाहिए। राजा ने थोड़े धीमे स्वर में
जवाब दिया।
और अगले दिन पूरे राज्य में मुनादी की गई कि
सभी लोग राजमहल के सामने खाली मैदान में पहुंचें। इसके बाद क्या हुआ, पाठक शायद
जानते ही होंगे।
- हरशंकर परसांई जी की हूबहू तो नहीं पर नकल जैसा लिखा गया एक व्यंग्य – राजू
सजवान