आज
दिन भर वालमार्ट पर कई खबरें
चली, जब
भी वालमार्ट का जिक्र आता,
तब ही मेरी
आंखों के सामने एक बुजुर्गवार
का चेहरा घूमने लगता। बात
दिल्ली विधानसभा चुनाव की
है। मैं दिल्ली बीजेपी कवर
करता था। दिल्ली बीजेपी
द्वारा चुनावी घोषणापत्र
जारी करना था। घोषणा पत्र जारी
करने के लिए प्रदेश बीजेपी
ने केंद्र से अपने दिग्गज
नेता को बुलाया था, मुरली
मनोहर जोशी। उनका नाम ही उनका
पूरा परिचय है।
चुनावी
घोषणा पत्र जारी कर दिया गया,
संवाददाता
सम्मेलन चल रहा था। जोशी जी
पत्रकारों के सवालों के जवाब
दे रहे थे। मेरी नजर घोषणा
पत्र के लगभग आखिरी पेज पर
पड़ी, जहां
लिखा था कि दिल्ली में रिटेल
कारोबार में एफडीआई की इजाजत
नहीं दी जाएगी।
न
जानें, मुझे
क्या सूझा कि मैंने जोशी जी
से सवाल पूछ लिया तो क्या
दिल्ली में वालमार्ट नहीं
आ पाएगा। (दरअसल,
उससे कुछ दिन
पहले ही दिल्ली के व्यापारी
की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित
पर दिल्ली में वालमार्ट का
स्टोर खोलने की इजाजत देने
का आरोप लगा चुके थे, शायद
इसलिए मुंह से वालमार्ट निकल
गया)।
लेकिन
मेरा सवाल सुनते ही जोशी जी
बिफर पड़े। उनके साथ ही प्रदेश
बीजेपी के नेता भी मेरे सवाल
की लगभग हंसी उड़ाते हुए बोले,
यह क्या सवाल
है, बीजेपी
तो हमेशा विदेशी कंपनियों की
विरोधी रही है। तब तक जोशी जी
ने हवा में हाथ लहराते हुए
प्रदेश नेताओं को चुप कराते
हुए कहा, हमारा
साफ-साफ
एजेंडा है कि विदेशी कंपनियों
को भारत में नहीं आने देंगे।
लगभग सब लोगों के एक सुर, जिनमें मेरे कुछ पत्रकार साथी भी शामिल थे ने मुझे झेंपने या यूं कहें कि शर्मिंदा होने के लिए विवश कर दिया। बल्कि जोशी जोशी जी के हिकारत भरा व्यहवार से खुद को अपमानित महसूस किया। ऐसा लगा कि सब भाजपाई ( जिनमें कुछ अपने साथी भी शामिल थे) मुझ से कह रहे हों, "बेवकूफ!! तुझे जरा भी समझ नहीं है, बीजेपी की, उसके एजेंडे की ..." उसके बाद मैं चुपचाप बैठ गया और खुद को इतने बड़े व्यक्तित्व से सवाल पूछने पर खुद को कोसने लगा।
आज भी जोशी जी का अपमानित करता लहजा भूला नहीं हूं।
खैर!!
इस
घटना को बीते 4 साल
से अधिक हो गए, अब
न तो जोशी जी दिखते हैं और ना
ही भाजपा का एजेंडा ...
फिर
भी जोशी जी कहीं सुन रहे हैं
तो सुन लें, वालमार्ट
भारत पहुंच चुका है ...