सोमवार, 15 अक्तूबर 2007

एकता कपूर ने देश मैं शादी को मजाक बाना कर रख दिया है

रविवार, 24 जून 2007

चुगली कोका कोला की

बीबीसी की अंग्रेज़ी प्रसारण सेवा की एक टीम ने क़रीब छह महीने पहले यह जानने के लिए केरल का दौरा किया था कि वहाँ स्थित कोका कोला प्लांट की वजह से लोगों को क्या परेशानियाँ हो रही हैं. हम इस रिपोर्ट को ज्यों का त्यों चिठ्ठे में भेज रहे हैं। इसे कहते हैं, चुगली...
दरअसल केरल के किसानों ने अपनी शिकायतों को लेकर कोका कोला के ख़िलाफ़ संघर्ष शुरू किया था और अदालत का दरवाज़ा भी खटखटाया था.
केरल के लोगों का कहना है कि कोका कोला के प्लांट की वजह से क्षेत्र में पानी की दिक्क़त हो गई है और फ़सलों पर भी असर पड़ा है.
उनका कहना है कि कोका कोला के प्लांट को पानी की बड़ी ज़रूरत होती है और इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए कंपनी ने ताक़तवर पंपों वाले कुँए बनाए हैं.
नतीजा ये हुआ है कि आसपास के इलाक़े में कुँए सूखने लगे हैं और जो कुछ बचे हैं उनका पानी इस हद तक दूषित हो गया है कि पीने लायक़ ही नहीं बचा है.
कचरा
किसानों का कहना है कि प्लांट से जो कचरा निकलता है उसे पास के खेतों में डाल दिया जाता है जिससे फ़सलें चौपट हो गई हैं.
जबकि कोका कोला इस कचरे को खाद बताती है और कहती है इसे किसानों के अनुरोध पर ही खेतों में डाला जाता है.

कोका कोला का भारत में अन्य स्थानों पर भी विरोध
कोका कोला ने भारत में अपने दर्जनों प्लांट बनाने के लिए अरबों डॉलर लगाए हैं. कंपनी का कहना है कि वह प्लांटों के आसपास के पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए समर्पित है...
इस बारे में कंपनी की नीति कहती है, "कोका कोला का सिद्धांत है कि वह जिसके भी संपर्क में आए उसे फ़ायदा पहुँचाए और उसे तरोताज़ा कर दे."
"हमारा हमेशा मानना रहा है कि अच्छे कारोबार का मतलब है - हम पर्यावरण को बहुत सम्मान दें और यह सम्मान पानी और प्राकृतिक संसाधनों से ही शुरू हो जाता है."
केरल के प्लैकिमादा इलाक़े में कोका कोला का प्लांट क़रीब 40 एकड़ इलाक़े में फैला हुआ है और अत्याधुनिक तकनीक का नमूना पेश करने वाले इस प्लांट में क़रीब 400 लोग काम करते हैं.
यह अकेला प्लांट हज़ारों दुकानों को अपने विभिन्न उत्पादों की आपूर्ति करता है जिनमें कोक, मिरिन्डा, थम्स अप और पानी की बोतल किनली भी शामिल है.
ज़ाहिर सी बात है कि इन उत्पादों के लिए भारी मात्रा में पानी की ज़रूरत होती है और इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए कंपनी ने बहुत ताक़तवर पंपों वाले कुँए बनाए हैं जो ज़मीन के अंदर सैकड़ों फुट नीचे से तेज़ी से भारी मात्रा में पानी खींचते हैं.
एक पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर के स्त्रीथरन कहते हैं कि इस ताक़त से खींचे जाने से पानी की गुणवत्ता पर भारी असर पड़ता है.
"जैसे-जैसे पानी तेज़ी से खींचा जाता है उससे उसमें ऐसे तत्व भी घुल जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं और इस तरह पानी की गुणवत्ता भी धीरे-धीरे खोने लगती है. नतीजा ये होता है कि पानी पीने लायक़ नहीं रह जाता है."
बीबीसी टीम
बीबीसी की एक टीम केरल के प्लेकिमादा में स्थिति का जायज़ा लेने के लिए हाल ही में फिर पहुँचा तो लोग कुछ डरे सहमे नज़र आए. इस टीम में बीबीसी रिपोर्टर जॉन वैट भी शामिल थे.
मुश्किल है
मेरी उम्र क़रीब 33 साल हो चुकी है और जब से होश संभाला है तब से पानी के साथ इस तरह की कोई समस्या नहीं देखी. जब से यह कंपनी आई है बस तभी से सारी समस्या शुरू हुई है

एक ग्रामीण
लोगों ने इस टीम को गाँव का एक कुँआ दिखाया जो गाँव के क़रीब अस्सी घरों में रहने वाले 600 लोगों का एक मात्र जल स्रोत रहा है. लेकिन इसके पानी का रंग और स्वाद बिल्कुल बदल चुका है.
एक ग्रामीण का कहना था, "मेरी उम्र क़रीब 33 साल हो चुकी है और जब से होश संभाला है तब से पानी के साथ इस तरह की कोई समस्या नहीं देखी. जब से यह कंपनी आई है बस तभी से सारी समस्या शुरू हुई है."
"हम नहीं समझते कि यह पानी ठीक है और केरल का स्वास्थ्य विभाग भी बता चुका है कि यह ठीक नहीं है. यह बिल्कुल भी पीने के लायक नहीं बचा है."
बीबीसी रिपोर्टर जॉन वेट ने प्लांट के अंदर अधिकारियों से बात करनी चाही तो उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया.
जॉन वेट ने किसी तरह कोका कोला इंडिया के उपाध्यक्ष सुनील गुप्ता का नंबर हासिल किया और पानी की इस हालत के बारे में सवाल किया तो उनका जवाब कुछ इस तरह था.
"हमने राज्य के जल अधिकारियों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जाँच कराई हैं और पानी के बारे में ये आरोप किसी भी वैज्ञानिक जाँच से सच साबित नहीं होते हैं."
बीबीसी रिपोर्टर जॉन वेट ने सुनील गुप्ता को पानी से भरी वह बोतल दिखाई जो प्लांट की दीवार से पाँच मीटर दूर स्थित एक कुँए से भरी गई थी.
जॉन वेट ने जब सुनील गुप्ता से यह सवाल किया कि क्या वह ख़ुद इस पानी को पी सकते हैं तो सुनील गुप्ता ने उसे पीने से साफ़ इनकार कर दिया.

किसानों की आजीविका पर ख़तरा
"साफ़ कहूँ तो नहीं. जैसा कि आप कह रहे हैं कि यह पानी प्लांट के पास से भरा गया है तो मैं इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करुंगा. लेकिन वहाँ रहने वाले लोगों के आसपास के पानी की आमतौर पर हम जाँच करते रहते हैं और जाँच में पाया गया है कि वहाँ का पानी ठीक है और पीने लायक़ है."
"आप इस पानी की जाँच करा लीजिए उसी के बाद हम बात कर सकते हैं."
पानी में हुए इस बदलाव ने इलाक़े के वातावरण और खेतीबाड़ी को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है.
बीबीसी की टीम को ऐसे बहुत से कुँए दिखाए गए जो हाल के वर्षों में धीरे-धीरे सूख चुके हैं जिससे बहुत से परिवारों की आजीविका पर ही ख़तरा मंडराने लगा है.
बहुत से परिवारों की फ़सलों की सिंचाई सिर्फ़ इन्हीं कुँओं के ज़रिए होती थी. बहुत से ऐसे भी परिवार थे जिनकी आजीविका सिर्फ़ खेतीबाड़ी ही है.
इतना ही नहीं पीने का पानी लाने के लिए भी अब इन लोगों को रोज़ाना मीलों दूर चलकर जाना पड़ता है



इस प्लांट से एक और बड़ी समस्या सामने आई और वो है - उससे निकलने वाला कचरा.
क़रीब छह महीने पहले बीबीसी की एक टीम ने वहाँ का दौरा करके कुछ तथ्यों का पता लगाया था और एक कार्यक्रम पेश किया था. जिसके बाद इस मुद्दे ने काफ़ी तूल पकड़ा और कोका कोला के उत्पादों की जाँच परख हुई थी. अब मामला न्यायालय में है.
स्थानीय लोगों ने बीबीसी को बताया कि कोका कोला प्लांट से हर दिन टनों कचरा पास के खेतों में डाल दिया जाता है.
इस बारे में कोका कोला की नीति पर नज़र डालते हैं जो कहती है, "कोका कोला कंपनी अपने कचरे को फिर से इस्तेमाल के क़ाबिल बनाने के लिए रचनात्मक तरीक़े खोजने की दिशा में लगातार काम करती रहती है."
नीति
अगर पृथ्वी की सुंदरता और पर्यावरण को बनाए रखना है तो कचरे को फिर से इस्तेमाल के लायक़ बनाया जाना बहुत महत्वपूर्ण है.

कोका कोला का नीतिगत बयान
"अगर पृथ्वी की सुंदरता और पर्यावरण को बनाए रखना है तो कचरे को फिर से इस्तेमाल के लायक़ बनाया जाना बहुत महत्वपूर्ण है."
कोका कोला का कहना है कि इसके केरल प्लांट से निकलने वाला कचरा दरअसल खाद है जो स्थानीय किसानों को मुफ़्त दिया जा रहा है.
इस दावे की जाँच परख के लिए बीबीसी टीम ने कोका कोला के प्लांट से थोड़ी ही दूर एक गाँव का दौरा किया. वहाँ के खेतों में पिछले दो साल से हर सप्ताह भारी मात्रा में कोका कोला के प्लांट का कचरा डाला जाता रहा है जिससे वहाँ मटमैले और काले रंग के टीले नज़र आने लगे हैं.
यह कचरा हज़ारों टन की तादाद में है. बीबीसी की टीम ने उस कचरे के नमूने इकट्ठे किए और लंदन में उनकी जाँच कराई.
बीबीसी रिपोर्टर जॉन वेट ने कोका कोला के भारत में उपाध्यक्ष सुनील गुप्ता से इस कचरे की उपयोगिता के बारे में सवाल उठाए जिसे कोका कोला खाद बताता है.
इस सवाल-जवाब का हिंदी रूपांतर हम आपके लिए पेश कर रहे हैं-
रिपोर्टर: मिस्टर सुनील गुप्ता, हम आपके प्लांट से निकलने वाले कचरे के बारे में कुछ बात करना चाहेंगे. हमने अपनी आँखों से देखा कि एक ट्रैक्टर-ट्रॉली कोका कोला के प्लांट से निकला और उसने सारा कचरा पास की एक नदी के किनारे उलट दिया. क्या यह ठीक बर्ताव है?
जो भी कुछ बाहर निकलता है उसे यहाँ के किसान खाद के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. और इस बारे में अभी तक तो कोई शिकायत नहीं मिली है.

सुनील गुप्ता
सुनील गुप्ता: हमारे प्लांट से कुछ भी ख़राब पदार्थ बाहर नहीं निकलता है और इसके लिए हमारे पास बहुत ही अत्याधुनिक और वैज्ञानिक प्लांट हैं. जो भी कुछ बाहर निकलता है उसे यहाँ के किसान खाद के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. और इस बारे में अभी तक तो कोई शिकायत नहीं मिली है.
रिपोर्टर: और आप कहते हैं कि यह पदार्थ खाद है?
सुनील गुप्ता: इसमें से कुछ हिस्से का इस्तेमाल यहाँ के किसान खाद के रूप में करते हैं.
यह किसानों को खाद बताकर पेश किया जा रहा है लेकिन हम आपसे पूछते हैं क्या यह वाक़ई खाद है?

बीबीसी रिपोर्टर
रिपोर्टर: यह किसानों को खाद बताकर पेश किया जा रहा है लेकिन हम आपसे पूछते हैं मिस्टर गुप्ता, क्या यह वाक़ई खाद है?
सुनील गुप्ता: हम समझते हैं कि यह फ़सलों के लिए भी ठीक है.
रिपोर्टर: ऐसा समझने का आपका आधार क्या है?
सुनील गुप्ता: हमने इस पदार्थ का विश्लेषण कराया है, उसी से हम इस नतीजे पर पहुँचे हैं.
ये थे भारत में कोका कोला कंपनी के उपाध्यक्ष सुनील गुप्ता से सवाल जवाब.
बीबीसी टीम ने उस पदार्थ और वहाँ के पानी के कुछ नमूने लिए जिनकी जाँच ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्जेटर में ग्रीनपीस की प्रयोगशालाओं में कराई गई.
जाँच करने वाले वैज्ञानिक डॉक्टर डेविड सेंटिलो ने बीबीसी को बताया कि पानी के उस सैंपल में बहुत खनिज अशुद्धताएं थी और वह पीने के लिए बिल्कुल भी सही नहीं था.
कैडमियम और सीसा
ध्यान दिला दें कि यह सैंपल वही था जिसे बीबीसी रिपोर्टर ने कोका कोला के भारत में उपाध्यक्ष सुनील गुप्ता से पीने की पेशकश की थी और जिसे उन्होंने पीने से साफ़ मना कर दिया था.
इतना ही नहीं, कोका कोला के प्लांट से खेतों में डाले जाने वाले काले पदार्थ के सैंपलों की जाँच के नतीजे और भी परेशान करने वाले थे.
इसके बारे में डॉक्टर डेविड सैंटिलो ने बताया, "इस काले पदार्थ में ज़हरीली धातुओं की भारी मात्रा पाई गई जिनमें कैडमियम और सीसा भी शामिल हैं."
"कैडमियम आदमी के गुर्दों और जिगर के लिए बहुत ख़तरनाक होता है. जहाँ तक सीसे का ताल्लुक़ है तो यह ख़ासतौर से बच्चों के नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका प्रणाली के विकास के लिए एक ज़हर का काम करता है."
रिपोर्टर: क्या आपको ऐसा कुछ नज़र आया जिससे कोका कोला इस पदार्थ को खाद के रूप में पेश कर रहा है.
सैंटिलो: यह वाक़ई देखने वाली बात है. कोका कोला एक ज़हरीले पदार्थ को खाद के रूप में पेश करके किसानों के खेतों में डाल रहा है. यह किसी प्लांट के कचरे से छुटकारा पाने के लिए एक तरह से किसानों का शोषण है.
डॉक्टर डेविड सैंटिलो का यह कहना था कि यह पदार्थ फ़सलों को भी प्रदूषित कर देता है जिसका असर उस अनाज को खाने वालों पर होना निश्चित है.


केरल के कोका कोला प्लांट से निकलने वाले कचरे और पानी की ख़राब हालत पर छह महीने पहले बीबीसी ने जो कार्यक्रम पेश किया उसके बाद यह मुद्दा भारतीय संसद तक में उठा.
इस मुद्दे पर पर्यावरणवादी भी आगे आए. मेनका गाँधी पर्यावरण के क्षेत्र में सक्रिय हैं जो भारत सरकार की सामाजिक न्याय और पर्यावरण मंत्री भी रह चुकी हैं.
मेनका गाँधी कहती हैं, "यह ज़रूरी है कि वे हमारे साथ आदमी की तरह बर्ताव करें. लेकिन उन्होंने क्या किया कि स्थानीय किसानों के भोलेपन का नाजायज़ फ़ायदा उठाया. कोका कोला ने यह कहाँ सोचा होगा कि बीबीसी यहाँ आकर उनका पर्दाफाश कर देगा."
रिपोर्टर: हम हाल ही में उसी प्लांट पर फिर गए और देखा कि अब भी वहाँ खेतों में कोका कोला प्लांट से निकलने वाले कचरे के बड़े-बड़े बोरे पड़े हुए हैं. मतलब ये कि समस्या अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है. आप इस बारे में क्या सोचती हैं?
मेनका गाँधी: मैं समझती हूँ कि हमें इस मुद्दे को उठाते रहना चाहिए और उनके उत्पादों का बहिष्कार करना चाहिए. और यह तब तक जारी रहे जब तक कि वे मुआवज़ा ना दे दें."
"जो भी नुक़सान हुआ है उसकी भरपाई करे, खेतों की सफाई कराएं, किसानों को मुआवज़ा दें, तभी हम समझ सकते हैं कि उन्होंने कुछ सुधार किया है."
मुद्दा यहीं ख़त्म नहीं होता. केरल के कोका कोला प्लांट से निकलने वाले कचरे का क्या कुछ हो रहा है यह जानने के लिए बीबीसी टीम ने प्लांट के अंदर जाने की काफ़ी कोशिश की लेकिन उसे अंदर जाने की इजाज़त नहीं दी गई.
तब बीबीसी रिपोर्टर जॉन वेट ने कोका कोला इंडिया के प्रसिडेंट संजीव गुप्ता से जानना चाहा कि बीबीसी के पिछले कार्यक्रम के बाद कंपनी ने क्या सुधार किए हैं.
हमने सभी प्लांटों में इस कचरे का फिर से परीक्षण कराया और अपने आँकड़ों में सुधार भी किया. इस तरह विज्ञान हमारे साथ है लेकिन मैं अपने आँकड़े आपको नहीं बता सकता.

संजीव गुप्ता
संजीव गुप्ता: हमने आपके कार्यक्रम और इसने जो मुद्दे उठाए उन्हें बड़ी गंभीरता से लिया. हमने हमारे प्लांट से निकलने वाले कचरे को खेतों में डालना बंद किया.
"हमने सभी प्लांटों में इस कचरे का फिर से परीक्षण कराया और अपने आँकड़ों में सुधार भी किया. इस तरह विज्ञान हमारे साथ है लेकिन मैं अपने आँकड़े आपको नहीं बता सकता."
रिपोर्टर: मिस्टर गुप्ता, आप जानते ही हैं कि हमारे कार्यक्रम में जो निष्कर्ष पेश किए गए थे उनकी पुष्टि कुछ ही दिन बाद हो गई थी जब केरल के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्लांट से कुछ सैंपल लिए थे और आपके प्लांट के कचरे में सीसे और कैडमियम के तत्व पाए गए थे.
संजीव गुप्ता: मैं इस वक़्त यह बताना चाहूँगा कि केरल में हम लंबे समय तक रहने वाली कंपनी हैं और हम एक आदर्श नागरिक या ज़िम्मेदार नागरिक रहे हैं. मैं यह भी कहना चाहूँगा कि आपकी चिंताएं महत्वपूर्ण हैं इसलिए हम उन्हें गंभीरता से लेते हैं.
"हमने आपके कार्यक्रम के बाद पूरे देश में अपने प्लांटों से निकलने वाला कचरा खेतों में डालना बंद कर दिया. इसलिए हम इसके बारे में कोई बहस नहीं कर सकते."
रिपोर्टर: लेकिन केरल के प्लेकिमादा में आप इसे पिछले तीन साल से खेतों में डाल रहे थे.
संजीव गुप्ता: सर, मैं यह कहना चाहूँगा कि हम विभिन्न प्रदूषण बोर्डों के साथ मिलकर काम करते हैं उनमें से कुछ ने कहा है कि यह कचरा ख़राब नहीं है. लेकिन फिर भी हमने इसके बारे में चिंताओं को गंभीरता से लिया है और पूरे देश में इसे ख़तरनाक़ समझा है.
रिपोर्टर: अच्छा, मान लिया, आप कहते हैं कि आप इन चिंताओं को गंभीरता से ले रहे हैं लेकिन अगर बीबीसी का कार्यक्रम प्रसारित नहीं होता तो आप यह कचरा उसी तरह खेतों में डालना जारी रखते.
संजीव गुप्ता: मैं मानता हूँ कि मेरे ख़याल में बीबीसी ने अच्छे मुद्दे की तरफ़ ध्यान दिलाया. मैं मानता हूँ कि बीबीसी केरल में हमारी और मदद कर सकता है.
मगर हमें अपना संदेश लोगों तक पहुँचाने में मुश्किल होती है क्योंकि कोका कोला को एक पूंजीवादी कंपनी मान लिया जाता है. अगर मार्क्सवादियों के शब्दों में कहें तो उनका नारा है - "कोका कोला को भारत से बाहर निकालो.

संजीव गुप्ता
"मैं यह भी कहूँगा कि हमारे पास एक ठोस कार्यक्रम है और इसे लागू करने और केरल के पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में योगदान की इच्छा शक्ति भी."
"मगर हमें अपना संदेश लोगों तक पहुँचाने में मुश्किल होती है क्योंकि कोका कोला को एक पूंजीवादी कंपनी मान लिया जाता है. अगर मार्क्सवादियों के शब्दों में कहें तो उनका नारा है - "कोका कोला को भारत से बाहर निकालो."
रिपोर्टर: तो आप कहते हैं कि यह सब एक राजनीति का हिस्सा है. यह पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा नहीं है. यह सिर्फ़ राजनीति है.
क्या कोई ज़िम्मेदार कंपनी ऐसा करेगी कि अपने कचरे की पर्याप्त जाँच कराए बिना ही, किसानों को यह भरोसा दिला दे कि यह खाद है?

बीबीसी रिपोर्टर
संजीव गुप्ता: नहीं. मैं सोचता हूँ कि यह पर्यावरण के लिए ठोस योगदान करने का मुद्दा है.
रिपोर्टर: लेकिन मिस्टर गुप्ता, क्या कोई ज़िम्मेदार कंपनी ऐसा करेगी कि अपने कचरे की पर्याप्त जाँच कराए बिना ही, किसानों को यह भरोसा दिला दे कि यह खाद है.
संजीव गुप्ता: लेकिन हमने उसकी जांच कराई है, हम इस पर बहस कर सकते हैं कि हमारा विज्ञान और हमारे आँकड़े सही हैं.
रिपोर्टर: लेकिन क्या आप जानते थे मिस्टर गुप्ता कि आपके कचरे में सीसा और कैडमियम जैसे ज़हरीले पदार्थ थे.
संजीव गुप्ता: हमने पूरे देश में अपने प्लांटों के कचरे की जाँच और परीक्षण कराए हैं जिनसे पता चलता है कि इन पदार्थों की मात्रा सुरक्षित सीमा के दायरे में थी और इन्हें खेतीबाड़ी में इस्तेमाल किया जा सकता है.
रिपोर्टर: मिस्टर गुप्ता, आपने कितना कचरा साफ़ कराया है.
संजीव गुप्ता: मेरा ख़याल है कि जिस किसान ने भी हमसे इसे साफ़ करने को कहा हमने उसे खेतों से उठवाकर वापस अपने प्लांट में रखवा दिया है. हमने इसे साफ़ करके अपने प्लांट में रख लिया है.
रिपोर्टर: केरल में अपने प्लांट में अगर यह कचरा इकटठा कर रहे हैं तो आगे इसका क्या होगा. मेरा मतलब है कि इसे इसी तरह तो प्लांट में इकट्ठा नहीं किया जा सकता. फिर इसका क्या होगा.
संजीव गुप्ता: हम इसे ऐसी जगह फेंक सकते हैं जहां फेंकने की इजाज़त हो. यह भी किया जा सकता है कि इसमें मौजूद धातुओं का स्तर कम करने के लिए कुछ परीक्षण किए जाएं. इस तरह हम विभिन्न विकल्पों पर काम कर रहे हैं.
"अगली बार जब आप केरल या भारत में होंगे तो हम आपको वहाँ ले जाएंगे और यह दिखाने में हमें ख़ुशी होगी कि हम क्या कर रहे हैं."
रिपोर्टर: मिस्टर गुप्ता, मैं तो इसी बार प्लांट के अंदर जाकर देखना चाहता था लेकिन मुझे अंदर ही नहीं जाने दिया गया.
संजीव गुप्ता: मैं इसके लिए आपसे माफ़ी माँगता हूँ लेकिन वादा करता हूँ कि अगली बार ऐसा नहीं होगा.
"मेरा ख़याल है कि आपने पिछली बार हमारा जो इंटरव्यू किया था उसके बाद हम इस बार आपसे कुछ डरे हुए थे. लेकिन मैं माफ़ी माँगता हूँ. हमारी मंशा तो यही है कि हमारा प्लांट पूरी तरह खुला है."
तो ये थे कुछ सवाल जिनके जवाब दे रहे थे भारत में कोका कोला कंपनी के प्रेसिडेंट संजीव गुप्ता.
सवाल यह भी रह जाता है कि केरल का कोका कोला प्लांट कितने दिन के लिए इस तरह खुला रहता है. केरल हाई कोर्ट ने यह फ़ैसला भी सुना दिया कि कोका कोला प्लांट अपनी जल आपूर्ति के लिए कुछ और विकल्प तलाशे.
और 17 फ़रवरी 2004 को राज्य सरकार ने ये आदेश भी जारी कर दिए हैं कि कोका कोला कंपनी पालक्कड़ ज़िले में अपने प्लांट के लिए इलाक़े से पानी नहीं निकाल सकती क्योंकि इससे सूखे का ख़तरा पैदा हो गया है.

बुधवार, 30 मई 2007

चुगली एकता कपूर की

मुझे चुगली करनी है, एकता कपूर की। कुछ सुना आपने...। एकता ने अपने एक इंटरब्यू में कहा