रविवार, 25 मई 2014

क्‍यों न उठे सवाल

एक पुराना किस्सा याद आ रहा है। मेरे पड़ोस में रहने वाला आदमी होली के दिन से गायब हो गया। अकेला रहता था, इसलिए किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कुछ दिन बाद प्रकट हुआ तो सबने पूछा, कहाँ थे? उसने बताया कि होली के दिन
ज्यादा शराब पीने के कारण वह कहीं बेहोश हो गया तो पुलिस ने पकड़ लिया। कोर्ट में पेश किया, जमानत के रूप में पैसे मांगे तो उसके पास पैसे नहीं थे।कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया। कुछ दिन बाद उसे छोड़ दिया।हो सकता है कि ऐसे किसी आदमी से आप भी परिचित हों!
अब इस किस्से को सुनकर मोदीवादी सीधे गालियां देते हुए कहेंगे कि नौंटकीवाल के पास तो दस हजार रुपये हैं, कोर्ट को देने के लिए...! बिल्कुल हैं, लेकिन केजरीवाल के बहाने क्या इस कानून पर सवाल नहीं उठना चाहिए कि यदि कोई अपराधी नहीं है तो वो पैसे क्यों भरे? बांड क्यों भरे??

 पत्रकार होने के नाते मुझे थोडी बहुत यह भी जानकारी है कि कई लोग ऐसे हैं, जो जमानत न होने की वजह से जेलों में रह रहे हैं। लोकल ट्रेन में सफर करते वक्‍त पुलिस बिना टिकट पकड ले तो मजिस्‍ट्रेट के सामने पेश करती है और पैसे न होने के कारण उन्‍हें जेल काटनी पडती है और हां जहां तक रही मजिस्‍ट्रेट द्वारा सूचित करने की बात तो वे जिस पुलिस की डयूटी लगाते हैं, वह तो बिना पैसे लिए हिलता तक नहीं है। खैर मेरा मकसद केजरीवाल की पैरवी करना नहीं,  बल्‍िक इन लोगों की बात को सामने रखना हे। केजरीवाल गलत हो सकता है, लेकिन अपराधी न होने के बावजूद जमानत देना या बांड भरना मुझ अज्ञानी को गलत लगता है। वह भी तब, जब कि अपराधी तो इसी जमानत की राशि को भर भर कर बाहर घूम रहे हैं।