बुधवार, 5 दिसंबर 2012

निजीकरण के बाद सात दिन पीना पड़ सकता है दूषित पानी !


निजीकरण के बाद सात दिन पीना पड़ सकता है दूषित पानी !

स्वयंसेवी संगठनों ने लगाया आरोप
निजी कंपनियों को करोड़ों रुपये का फायदा पहुंचाने का आरोप

राज्य ब्यूरो नई दिल्ली
नांगलोई जल संयंत्र जिन निजी कंपनियों को सौंपा गया है, उन्हें यह छूट दी गई है कि वे दूषित पानी की शिकायत को दूर करने में कम से कम सात दिन का समय ले सकती हैं। यानी, उपभोक्ताओं को सात दिन तक दूषित पानी पीना पड़ सकता है। यह आरोप मंगलवार को पानी के निजीकरण का विरोध कर रहे संगठनों ने लगाया है। इन संगठनों ने निजी कंपनियों को करोड़ों रुपये का फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया।
सिटीजन फ्रंटस फार वाटर डेमोक्रेसी के एस.ए. नकवी, वाटर वर्कर्स एलायंस के संजय शर्मा और वाटर, सीवर एंड सीवेज डिस्पोजल इम्पलायज यूनियन के राम प्रकाश शर्मा ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में नांगलोई जल संयंत्र को लेकर दिल्ली जल बोर्ड और निजी कंपनी के बीच हुए समझौते (एमओयू) में गड़बड़ी के कई आरोप लगाए।
उन्होंने कहा कि कंपनी के साथ उपभोक्ता शिकायत निवारण को लेकर हुए समझौते में कंपनी को कई छूट दी गई है, जिसमें सात दिन में दूषित पानी की शिकायत को दूर करना, कम दबाव में पानी आने की शिकायत को सात दिन में दूर करना, पानी न आने की शिकायत को एक दिन में दूर करना और बिलों की शिकायत को सात दिन में दूर करना शामिल है।
एस.ए. नकवी और संजय शर्मा ने कहा कि उनके पास जल बोर्ड से सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना और जल बोर्ड व निजी कंपनियों द्वारा अपनी वेबसाइट पर अपलोड सूचना की पड़ताल के बाद ये आरोप लगाए हैं।
नकवी ने बताया कि समझौते में कहा गया है कि कंपनी को कुल आपरेटर खर्च के रूप में 14.99 रुपये प्रति किलोलीटर दिया जाएगा, इसमें बिजली का खर्च और कच्चे पानी का मूल्य शामिल नहीं है, यदि इसे जोड़ दिया जाए तो कंपनी को आपरेटर खर्च के नाम पर लगभग 18 रुपये प्रति किलोलीटर पहुंच जाएगा। इतना ही नहीं, तय समझौते के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में होने वाली वृद्धि की दर के हिसाब से हर साल अप्रैल माह में आपरेटर खर्च में वृद्धि की जाएगी। संगठनों का कहना है कि वर्तमान दर के मुताबिक एक साल में लगभग 1.16 रुपये में वृद्धि हो सकती है और इसी दर से वृद्धि होती रही तो आपरेटर खर्च की दर 47-50 रुपये प्रति किलोलीटर तक पहुंच जाएगी, जबकि दिल्ली जल बोर्ड इस समय नांगलोई ट्रीटमेंट प्लांट से पानी के वितरण पर 4.86 रुपये प्रति किलोलीटर खर्च कर रहा है। इसमें कर्मचारियों का वेतन, बिजली खर्च, आपरेशन एंड मेंटीनेंस, बिल की छपाई व वितरण, कच्चे पानी का खर्च शामिल है। संगठन ने सवाल किया है कि निजी कंपनी को लगभग चार गुणा अधिक खर्च क्यों दिया जा रहा है।
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सर्विस चार्ज क्यों : जस्टिस सच्चर
संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर ने कहा कि जल बोर्ड इन दिनों पानी के बिल के साथ सर्विस चार्ज जोड़ रहा है, ये सर्विस चार्ज किस बात के हैं। इसके साथ ही हर साल दस फीसद पेयजल शुल्क बढ़ाने का आधार भी जनता को बताया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पानी जैसे प्राकृतिक संसाधन का निजीकरण करना संवैधानिक नियम के खिलाफ है।



समाप्त
राजू सजवान

रविवार, 18 नवंबर 2012

ठाकरे को मेरी श्रदधांजलि

मेरे एक साथी हैं, टीवी पर ठाकरे की मौत की खबरें देखकर उत्‍साहित हैं, कह रहे हैं कि जब मराठियों की बात करने वाले को देश इस तरह सम्‍मानित कर रहा है तो मैं भी बिहारियों का पक्ष ले कर लाठी डंडा उठा लेता हूं और एक फौज तैयार कर लेता हूं । और जो लोग ठाकरे को हिंदू वादी बता रहे हैं तो वे लोग ये बताएं कि क्‍या बिहारी या दक्षिण भारतीय हिंदू नहीं है। ऐसा नहीं है कि ठाकरे की मौत का मुझे दर्द नहीं है , लेकिन दर्द इस बात का है कि ठाकरे की मौत के साथ उनकी क्षेत्रवादी राजनीति का अंत नहीं हो रहा है, बल्कि मीडिया उनका उत्‍तराधिकारी ढूंढ रहा है।

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

वढेरा की किस्‍मत और हमारी बदकिस्‍मती

मेरा एक दोस्‍त है, लंगोटिया , जब हम जवान हो रहे थे तो उसकी एक इच्‍छा थी कि किसी तरह उसका विवाह प्रियंका गांधी से हो जाए, पता नहीं कि उसकी यह इच्‍छा मुझे बडी अजीब लगती थी, लेकिन अब समझ में आया कि वह प्रियंका से शादी क्‍यों करना चाहता था, काश उसकी शादी हो जाती तो एक दोस्‍त होने के नाते मेरे पास भी एक अच्‍छा खासा फ़लैट होता, काश वढेरा की जगह मेरा दोस्‍त होता , बदकिस्‍मती मेरी और उसकी भी

सोमवार, 20 अगस्त 2012

अमीरों पर मेहरबान सरकार


केंद्र सरकार दिल्‍ली के सुपर रिच यानी महा अमीर लोगों पर मेहरबान होने जा रही है। इन लोगों द्वारा खेती बाडी की जमीन पर बनाए गए डाक बंगला नुमा कोठियों को मंजूरी दी जा रही है। वैसे अगर कोई गरीब आदमी किसी प्रापर्टी डीलर झांसे में आ कर खेती बाडी की जमीन पर कोई छोटो मोटा प्‍लाट ले लेता है तो उसे अवैध बता कर गिरा दिया जाता है, लेकिन सालों से ऐसी जमीन पर कब्‍जा जमाए बैठे मोटे सेठ को रियायत की तैयारी पूरी हो गई है। दिलचस्‍प बात यह है कि गरीबों के आवास या हरियाली की फिक्र कर रहे एनजीओ की चुप्‍पी  इस पॉलिसी में क्‍या खामिया हैं, इस पर मेरी एक रिपोर्ट 

कई खामियां हैं फार्म हाउस पॉलिसी में

राजू सजवान, नई दिल्ली
दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा पास की गई फार्म हाउस पॉलिसी में कई खामियां हैं। यह पॉलिसी टाउन प्लानिंग के नियमों के मुताबिक नहीं हैं। दिलचस्प बात यह है कि डीडीए के कई अधिकारी इसके पक्ष में हैं, लेकिन वे खुलकर इसका विरोध नहीं कर पा रहे हैं।
अब तक दिल्ली में कम से कम ढाई एकड़ जमीन पर ही फार्म हाउस निर्माण की इजाजत थी। वह भी कुल क्षेत्रफल का एक फीसद। यानी यहां केवल चौकीदार या देखरेख के लिए छोटा सा कमरा बनाने की ही इजाजत थी, लेकिन पिछले दिनों हुई डीडीए की बोर्ड बैठक के बाद एक एकड़ जमीन पर 15 फीसद एफएआर की इजाजत देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है। डीडीए ने इसे कंट्री होम का नाम दिया है।
टाउन प्लानिंग का नियम कहता है कि जब कृषि योग्य भूमि पर रहने की इजाजत दी जाती है तो उस भूमि का चेंज आफ लैंड यूज (भू उपयोग परिवर्तन) कराना होता है। दिल्ली के भवन उपनियमों के मुताबिक प्लाट का सबडिविजन भी नहीं होता। प्रस्तावित फार्म हाउस पॉलिसी के मुताबिक इस इलाके में नौ मीटर चौड़ी सड़कें होंगी, लेकिन किसी भी टाउन शिप में 18 मीटर चौड़ी सड़कें होनी चाहिए, ताकि वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट आसानी से आ जा सके।
जानकार बताते हैं कि फार्म हाउस पॉलिसी बनाने से पहले यह तय किया जाना चाहिए था कि इस इलाके में बिजली-पानी-सीवर जैसी सेवाएं कौन ओर कैसे देगा। टाउन प्लानिंग के नियम के मुताबिक किसी भी कालोनी में लगभग 40 फीसदी हिस्सा सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए होता है, इसमें रोड, सीवर, पानी, अस्पताल, पुलिस स्टेशन, अग्निशमन जैसी सेवाएं शामिल की जाती है।

एक परिवार बनाम 200 परिवार 

डीडीए के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि देश भर में जहां कम आय वर्ग के लिए मकान (एलआईजी) बनाने की योजना बन रही हैं, वहीं दिल्ली में कंट्री होम की अवधारणा को बढ़ावा दिया जा रहा है। कंट्री होम यानी एक एकड़ जमीन पर जहां एक परिवार को बसाया जाना है, वहां एलआईजी फ्लैट बना कर लगभग 200 परिवारों को बसाया जा सकता है।

हरित क्षेत्र को होगा नुकसान 

इस अधिकारी के मुताबिक दुनिया भर में ऊध्र्वाकार विकास की ओर ध्यान दिया जा रहा है, ताकि कम से कम जमीन का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन दिल्ली में कृषि योग्य भूमि पर बसाया जा रहा है। दिल्ली में अभी 11 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि जिसे हरित क्षेत्र माना जाता है, लेकिन फार्म हाउस पॉलिसी के बाद हरित क्षेत्र को सबसे अधिक नुकसान होगा।

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

आज सुबह लोकल ट्रेन से आते वक्‍त ओखला रेलवे स्‍टेशन पर एक बच्‍चे को पानी की थैलियों से भरे एक बैग को कंधे में रख कर इधर से उधर भागते देखा। बैग इतना भ्‍ारा था कि मुंह से आह निकल गई और चार पंक्तियां भी -

पीठ इसकी भी झुकी है
और उसकी भी
फर्क इतना है कि
उसके कंधों पर किताबों का बोझ है
और इसके कंधों पर
अपने परिवार का
उसका बोझ तो शायद उसका भविष्‍य बना दे
लेकिन इसका भविष्‍य
इस बोझ तले दबना तय है .....

शनिवार, 11 अगस्त 2012

प्राइवेट कंपनी पर होगी जल बोर्ड की मेहरबानी


दिल्‍ली जल बोर्ड दिल्‍ली में पानी के निजीकरण की पूरी तैयारी कर चुका है। निजी कंपनी को कैसे कैसे फायदा पहुंचाया जाएगा, इसकी एक बानगी देखिये कि निजी कंपनी को कोई नुकसान न हो, इस लिए पाइप बिछाने का सारा खर्च जल बोर्ड करेगा और पूरे इलाके की पाइप लाइन बदली जाएगी। दिल्‍ली सरकार की साजिश की परत खोलती मेरी दो रिपोर्ट  



अब तक पानी की पाइप लाइन से कनेक्शन लेने के लिए आपको मीटर तक पाइप बिछाने का खर्च जल बोर्ड को देना होता है, लेकिन मालवीय नगर, वसंत विहार और महरौली में उपभोक्ताओं के घर के मीटर तक पाइप लाइन तो बदली जाएगी, पर उसका पैसा उपभोक्ता से नहीं लिया जाएगा।
ऐसा इसलिए किया जाएगा, ताकि पानी की लीकेज से होने वाले राजस्व के नुकसान को कम किया जा सके। जल बोर्ड का मानना है कि इन इलाकों में पानी की आपूर्ति मांग से अधिक हो रही है, लेकिन लीकेज और पानी की चोरी के कारण कई इलाकों में लोगों को पानी नहीं मिल पाता।
अब जब जल बोर्ड ने इन इलाकों में पानी का वितरण निजी कंपनियों को सौंपने का निर्णय ले लिया है, जो लोगों को सातों दिन 24 घंटे पानी सप्लाई करेगी। यह तभी संभव है कि जब पानी की लीकेज रोकी जाएगी। यही वजह है कि जल बोर्ड जमीन के नीचे डाली गई जीआई पाइप बदलने का निर्णय लिया है। यह जीआई पाइप जमीन के नीचे सड़ गल जाता है, इसकी जगह एमडीबी पाइप लाइन डाली जाएगी, इस पाइप की उम्र 50 साल है।
जल बोर्ड अधिकारियों का कहना है कि लीकेज खत्म होने के बाद हर उपभोक्ता के घर आधुनिक मीटर लगाए जाएंगे। इसके बाद लाइन लॉस काफी कम हो जाएगा और लोगों को 24 घंटे सातों दिन पानी मिलने लगेगा।
इतना ही नहीं, जल बोर्ड घरों के अंदर की लीकेज की भी जांच करेगा। बोर्ड अधिकारियों का कहना है कि नागपुर और हुबली (कर्नाटक) में जहां 24 घंटे पानी दिया जाता है, वहां सबसे पहले लोगों ने शिकायत की कि उनका बिल काफी अधिक आ रहा है, जब जांच की गई तो पाया लगभग 20 फीसद घरों के अंदर पानी लीक होता है, इसलिए वे घरों में पानी की लीकेज की जांच निशुल्क करेंगे।
बोर्ड अधिकारियों ने बताया कि लोगों की शिकायत रहती है कि जल बोर्ड पाइप लाइन बिछा देता है, लेकिन उसके बाद सड़कें ठीक नहीं की जाती, क्योंकि यह काम दिल्ली नगर निगम को करना होता है, परंतु इन तीनों इलाकों में जल बोर्ड ही सड़कों का पुनर्निर्माण करेगा। इस तरह की विशेष व्यवस्था की गई है।
इन सबका मकसद यह है कि प्राइवेट कंपनी को ऐसी व्यवस्था दी जाए, ताकि उसे पर्याप्त पानी मिल सके और वह उपभोक्ताओं को 24 घंटे पानी दे सके।
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महंगाई के साथ साथ बढ़ेगा पानी का बिल!


पानी के वितरण में निजी भागीदारी (पीपीपी) अपनाने के बाद संभव है कि लोगों को महंगाई दर के हिसाब से पानी की कीमत चुकानी पड़े। दिल्ली में अपनाए जा रहे नागपुर मॉडल के मुताबिक पानी का वितरण कर रही कंपनी महंगाई दर में हो रहे बदलाव के आधार पर अपने शुल्क में वृद्धि करवा सकती है।
नागपुर में पेयजल व्यवस्था नागपुर नगर निगम के पास है, जिसने ओरेंज सिटी वाटर  लिमिटेड को पानी के वितरण का काम सौंपा हुआ है। करार के मुताबिक नागपुर नगर निगम निजी कंपनी को बतौर ऑपरेशन एंड मेंटीनेंस (ओएंडएम) शुल्क के रूप में आठ रुपये प्रति किलोलीटर की दर से भुगतान करेगा।
नागपुर नगर निगम की इंजीनियरिंग कंसलटेंट कंपनी डीआरए कंसलटेंटस प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक दिनेश राठी के मुताबिक करार में यह भी स्पष्ट है कि भारतीय रिवर्ज बैंक द्वारा निर्धारित महंगाई दर के आधार पर ओएंडएम शुल्क में वृद्धि हो जाएगी। हालांकि लोगों से वसूले जाने वाले पेयजल शुल्क पर इसका कोई असर तब तक नहीं पड़ेगा, जब तक नागपुर नगर निगम कोई फैसला न ले ले। दिनेश राठी ही दिल्ली के मालवीय नगर प्रोजेक्ट के कंसलटेंट भी है, लेकिन उन्होंने दिल्ली में होने वाले करार के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।
इस मामले में दिल्ली जल बोर्ड का कहना है कि लोगों से वसूले जाने वाले पेयजल शुल्क का निर्धारण जल बोर्ड ही करेगा और ऑपरेटर (निजी कंपनी) को भुगतान जल बोर्ड करेगा। जानकारों का कहना है कि यह सही है कि प्राइवेट कंपनी के शुल्क में महंगाई दर के मुताबिक वृद्धि का सीधा असर लोगों पर नहीं पड़ेगा, लेकिन संभव है कि ऑपरेटर का शुल्क बढऩे पर जल बोर्ड लागत बढऩे का तर्क देकर लोगों से वसूले जाने वाले पेयजल शुल्क में वृद्धि कर दे, क्योंकि ऐसा ही बिजली कंपनियां और दिल्ली बिजली नियामक आयोग ने भी किया है।
इतना ही नहीं, आपरेटर को जो भी पैसा दिया जाएगा, वह जल बोर्ड का होगा, यानी जल बोर्ड द्वारा किसी न किसी मद के माध्यम से जनता द्वारा इक_ा किया गया पैसा ही आपरेटर को दिया जाएगा।

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निजी कंपनी को 10 रुपये और पब्लिक को दो रुपये
दिल्ली में पानी के पीपीपी प्रोजेक्ट का गहन अध्ययन कर रही संस्था वाटर सिटीजन्स फ्रंट फॉर वाटर डेमोक्रेसी के संयोजक एस.ए. नकवी बताते हैं कि जल बोर्ड ने निजी कंपनी को 10.64 रुपये प्रति किलोलीटर का भुगतान करेगा, जबकि जनता को दो रुपये प्रति किलोलीटर की दर से दिया जाता है। इसके अलावा निजी कंपनी को दो साल तक बिजली पानी और अन्य सेवाएं मुफ्त देने का भी प्रावधान है।

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दिल्ली की गुलाबी तस्वीर के पीछे का सच


---कांग्रेस शासन काल में भूख और गरीबी से मारे गए 737 लोग





बेशक दिल्ली सरकार के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 76 हजार रुपये (लगभग 482 रुपये रोजाना) सालाना है, लेकिन इस गुलाबी तस्वीर के पीछे की सच्चाई यह है कि हर सप्ताह एक व्यक्ति देश की राजधानी में भूख या गरीबी से दम तोड़ रहा है। दिलचस्प यह है कि दिल्ली को अंतर्राष्ट्रीय शहर बनाने का दावा करने वाली कांग्रेस सरकार के 14 साल के शासन काल में 737 लोग भूख और गरीबी के कारण अकाल काल का ग्रास बन चुके हैं।
यह खुलासा हुआ है, सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत मिले एक जवाब से। सीलमपुर निवासी नैय्यर आलम ने दिल्ली पुलिस से पूछा था कि 1999 से लेकर अब तक कितने लोगों ने भूख से तंग होकर आत्महत्या की या भूख के कारण उनकी मौत हुई। आलम ने इसी तरह गरीबी के कारण आत्महत्या या मौत के आंकड़े भी पुलिस से मांगे।
पुलिस मुख्यालय ने सभी जिलों से ये आंकड़े मंगाए और जब जवाब जून 2012 में आलम को मिला तो वह चौंकाने वाला था। पिछले साल वर्ष 2011 में दिल्ली में भूख और गरीबी से मरने वालों की संख्या 62 थी। इसमें से 15 लोगों ने भूख और 47 लोगों ने गरीबी के कारण दम तोड़ा। वर्ष 2012, मार्च तक मरने वालों की संख्या 11 हैं।
इस तरह वर्ष 2010 में भूख से 18 और गरीबी से 40 लोगों ने दम तोड़ा। दिलचस्प बात यह है कि अक्टूबर 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के कारण दिल्ली पूरे विश्व में चर्चा का विषय बनी हुई थी और दिल्ली व केंद्र सरकार दिल्ली में हुए विकास का जमकर ढिंढोरा पीट रही थी, लेकिन इस साल भूख और गरीबी से हुई मौतों के बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा।
इससे पहले वर्ष 2009 में भी भूख और गरीबी से 60 लोग मारे गए थे। हालांकि वर्ष 2008 में यह आंकड़ा कुछ कम था और भूख गरीबी से मरने वालों की संख्या 39 रिकार्ड की गई। वर्ष 2005 और 2002 में सबसे अधिक 72 मौतें हुई, जबकि वर्ष 2001 में सबसे कम 37 लोगों की मौत हुई।
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पुलिस के आंकड़े संदेहास्पद
हालांकि नैय्यर आलम को उपलब्ध कराए गए पुलिस के आंकड़े भी पूरा सच नहीं हैं। उनको उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक इन 15 सालों में अकेले पश्चिमी जिले में 689 मौतें गरीबी और भूख से हुई, जबकि बाहरी जिले में 40 मौते, उत्तरी जिले में दो मौतें और पूर्वी जिले में चार मौतें हुई। अन्य जिलों के पुलिस अधिकारियों ने अपने जिले में भूख और गरीबी से मरने वालों की संख्या शून्य बताई है। आलम कहते हैं कि उन्हें संदेह पुलिस विभाग ने सूचना छिपाई है और पूरे आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए गए।
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पिछले 14 साल में भूख और गरीबी से हुई मौतें

वर्ष 2012 मार्च तक   11 मौतें

वर्ष 2011 में      62
वर्ष 2010 में      58
वर्ष 2009 में      60
वर्ष 2008 में      39
वर्ष 2007 में      52
वर्ष 2006 में      44
वर्ष 2005 में      72
वर्ष 2004 में      43
वर्ष 2003 में      44
वर्ष 2002 में      72
वर्ष 2001 में      37
वर्ष 2000 में      52
वर्ष 1999 में      55

थोड़ा सा चूके तो गायब हो जाती है आपकी रसोई



अप्रैल 2008 में शुरू हुआ भूख मुक्त दिल्ली अभियान गति नहीं पकड़ पाया है। यही वजह है कि इस अभियान के तहत अभी तक मात्र 13 आप की रसोई केंद्र ही चल रहे हैं। इन केंद्रों पर भी भूखे व्यक्ति की थोड़ी सी चूक उसे दिन भर के लिए भूखा रहने को मजबूर कर देती है। जागरण ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना की पड़ताल करने के लिए अलग अलग केंद्रों का दौरा किया।
अप्रैल 2008 में निजामुद्दीन बस्ती में पहली आपकी रसोई केंद्र का उद्घाटन किया था मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने। जागरण टीम जब खोजते खोजते इस जगह पहुंची तो कुछ पुराने लोगों ने बताया कि हां, दीक्षित ने यहीं एक कार्यक्रम में गरीबों को खाना खिलाने का वादा किया था। कुछ माह तक इस जगह एक गाड़ी आकर इलाके के गरीबों को खाना खिलाती थी, लेकिन चार-पांच माह बाद यह गाड़ी आना बंद हो गई और इलाके के गरीब अब कुछ दयावान लोगों के रहमो-करम पर अपना पेट भरते हैं।
 शाहदरा जीटी रोड पर पौने एक बजे पहुंची। वहां दर्जनों लोग आपकी रसोई वैन का इंतजार कर रहे थे। इन लोगों ने बताया कि वैन का कोई निर्धारित समय नहीं है, इसलिए कई दफा इधर-उधर होने के कारण उन्हें खाना नहीं मिल पाता। लगभग सवा दो बजे वैन आई और देखते ही देखते वहां गरीब लोगों की लाइन लग गई।
इन गरीबों को जो खाना दिया जा रहा था, उसे देख कर जागरण संवाददाता भौंचके रह गए। पीली दाल ऐसी कि डालते ही पत्तल पर फैल गई। चावल गीले, आलू की सब्जी और रोटी। लेकिन गरीबों के लिए यह अन्न भी कम नहीं था। थोड़ी देर में ही गाड़ी में आए लोग खाना बांट कर चलते बने। उन्होंने बताया कि खाना नजफगढ़ में बना कर यहां लाया जाता, यानी लगभग 40 किलोमीटर दूर से। संवाददाता ने जब पूछा कि खाना खराब नहीं होता तो वैन में आए लोगों ने बस इतना कहा कि खाना कभी खराब नहीं होता।
मंगोलपुरी आर -ब्लाक और आजादपुर स्थित रैन बसेरे पर पहुंची। लोगों ने बताया कि कि खाने की गुणवत्ता भी सही नहीं होती है। चावल रोटी व पतली दाल के अलावा कभी उन्हें कुछ नहीं मिलता है। खाने की गाडिय़ों के आने का समय का भी कोई निश्चित नहीं होता। गाडिय़ों के इंतजार में उन्हें काम छोडऩा पड़ता है।
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लोगों ने कहा कि
'दिन में जो खाना मिलता है, उसी में थोड़ा बचाकर रात के लिए रख लेते हैं। लेकिन जब दिन के खाने से कुछ नहीं बचता है तो रात में उनके सामने भूखे सोने के सिवा कोई चारा नहीं बचता है।Ó
मुकेश चौहान, मंगोलपुरी रैन बसेरा  में रहने वाला मजदूर  
.......................
'कभी कभी काम नहीं मिलने के कारण उनके पास पैसे भी नहीं होते हैं, जिससे वह बाजार से खाना खरीद कर खाये। ऐसे में उसे कई बार भूखे पेट सोना पड़ता है। Ó
धर्मेंद्र, रोहिणी सेक्टर 26 के रैन बसेरा में रहने वाला मजदूर
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13 केंद्रों पर बंटता है खाना
मुख्यमंत्री के अतिरिक्त सचिव (भागीदारी प्रकोष्ठ) कुलानंद जोशी ने बताया कि अभी 13 केंद्रों पर आपकी रसोई के तहत गरीबों को खाना खिलाया जाता है। इसमें से सात इस्कॉन और छह अक्षयपत्रा संगठनों को सौंपे गए हैं। ये संगठन सीधे कारपोरेट समूह से एक साल की वित्तीय मदद के रूप में 14 लाख रुपये (जो एक केंद्र का खर्च है) ले लेते हैं और आज तक किसी भी केंद्र से किसी तरह की शिकायत नहीं आती है। सरकार की ओर से इन केंद्रों पर नजर रखी जाती है। उन्होंने कहा कि बारापुला एलिवेटिड रोड का निर्माण कार्य शुरू होने के कारण निजामुद्दीन बस्ती वाला केंद्र बंद किया गया है और प्रयास किए जा रहे हैं कि कुछ अन्य कारपोरेट समूहों को जोड़ कर आपकी रसोई केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए।

सरकार को नहीं दिखते दिल्ली में भूख से मरते लोग



दिल्ली सरकार का दावा है कि दिल्ली में भूख से कोई नहीं मरता और दिल्ली पुलिस को स्पष्ट करना चाहिए कि पुलिस ने मौतों का कारण निकलने के लिए किस प्रणाली का इस्तेमाल किया, लेकिन दिल्ली सरकार शायद यह नहीं जानती कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम कर रहे नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो भी मानता है कि दिल्ली में भूख और प्यास से लोग मर रहे हैं।
सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत दिल्ली पुलिस द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना कि दिल्ली में 14 साल में भूख से 177 मौतों की खबर 'दैनिक जागरणÓ में प्रकाशित होने के बाद दिल्ली के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री हारुन युसूफ ने कहा कि दिल्ली में भूख से मौत हो ही नहीं सकती, क्योंकि जहां सरकार की अलग-अलग योजनाएं चल रही हैं, वहीं धार्मिक एवं स्वयंसेवी संगठन इतना भोजन बांटते हैं कि कोई भूख नहीं मर सकता। युसूफ ने यह भी कहा कि कोई नशेड़ी जिसे खाने से ज्यादा नशे की चिंता हो और वह भोजन खाना ही नहीं चाहता तो बात अलग है।
सरकार के इस बयान की हकीकत जांचने के लिए 'जागरणÓ ने अपराध के रिकार्ड का ब्यौरा रखने वाली सबसे बड़ी संस्था नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट को खंगाला तो वह और भी चौंकाने वाले निकले।
आरटीआई में दिल्ली पुलिस ने बताया था कि वर्ष 2008 में भूख से सात लोगों की मौत हुई, लेकिन एनसीआरबी के रिकार्ड बताते हैं कि भूखमरी और प्यास से दिल्ली में वर्ष 2008 में 73 मौत हुई और मरने वालों में पांच महिला भी शामिल थीं। इसी तरह दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2009 में भूख से मरने वालों की संख्या 20 बताई थी, लेकिन एनसीआरबी के मुताबिक इनकी संख्या 32 थी, जिनमें तीन महिला शामिल थी।
राष्ट्रमंडल खेल वर्ष 2010 में दिल्ली पुलिस के मुताबिक भूख से मरने वालों की संख्या 18 थी तो एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 39 मौतें भूखमरी और प्यास के कारण हुई। हालाकि 2011 में यह आंकड़ा कुछ गिरा और साल भर में भूखमरी से मरने वालों की संख्या सात रही।
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पीडीएस बंद हुआ तो बिगडेंगे हालात
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) पर काम कर रही संस्था लोक शक्ति मंच ने खाद्य आयुक्त को भेजे पत्र में कहा है कि राशन के बदले नगदी योजना शुरू होने से दिल्ली में हालात और बिगड़ेंगे। इस पैसे को घर का मुखिया कहीं और खर्च कर देगा या महंगाई बढऩे पर अनाज गरीबों की पहुंच से दूर हो जाएगा।

दिल्ली में भूख से होती हैं कितनी मौतें!



उड़ीसा के कालाहांडी में भूख से मौत की खबरें तो आम हैं, लेकिन राजधानी दिल्ली में भूख से साल भर में 15 से 20 मौतों की खबर कभी सुर्खियां नहीं बनी। दिलचस्प यह कि देश के हुक्मरानों की नगरी दिल्ली में सरकार के साथ साथ कारपोरेट जगत के दिग्गजों और हजारों की संख्या में स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) हैं, लेकिन फिर भी लोग भूख से मर रहे हैं।
बेशक दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 14 साल में 177 मौतें भूख के कारण हुई हैं, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता एवं राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के सदस्य हर्ष मंदर कहते हैं कि दिल्ली में इससे कहीं अधिक मौतें भूख के कारण हो रही हैं। मंदर के मुताबिक उन्होंने एक शोध कराया और पाया कि हर रोज आठ-दस लोग दिल्ली में लावारिश मौत मर जाते हैं। इनका कोई भी रिकार्ड नहीं रखा जाता। इससे पता ही नहीं चल पाता कि इन लोगों की मौत किस कारण हुई।
शोध के तहत एक पुलिस थाना कश्मीरी गेट का रिकार्ड देखा तो पाया कि दुर्घटना, आत्महत्या या हत्या के कारण केवल आठ फीसद लोगों की मौत हुई, जबकि 92 फीसद मौतों को प्राकृतिक मौत बताया गया, जो भूख-प्यास, ठंड या गर्मी, तपेदिक जैसी बीमारी के कारण होती है। लेकिन इन्हें प्राकृतिक मृत्यु बता कर पुलिस रिकार्ड में दर्ज किया जाता है।
भूख मुक्त दिल्ली अभियान
 ऐसा नहीं है कि दिल्ली सरकार को इसका आभास नहीं है। दिल्ली सरकार ने वर्ष 2008 में एक अभियान शुरू किया था, नाम था 'भूख मुक्त दिल्लीÓ। यह अलग बात है कि इसी साल भूख से आठ और अगले साल 2009 में चार मौतें हुई। इस अभियान के तहत 'आपकी रसोईÓ नामक कार्यक्रम की शुरूआत की गई। इसके तहत गरीब बेसहारा लोगों को दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक मुफ्त भोजन दिया जाना शुरू हुआ। सरकार ने स्वयंसेवी संगठनों के सहयोग से दिल्ली के 12 जगहों पर 'आपकी रसोईÓ की शुरूआत की। दावा किया गया कि इससे गरीबों की भूख तो मिटेगी ही साथ ही भारी संख्या में कुपोषण के शिकार हो रहे गरीब बच्चों को कुपोषण से मुक्ति भी मिलेगी, लेकिन दिल्ली में गरीबों पर काम कर रही संस्था इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसायटी के इंदुप्रकाश सिंह कहते हैं कि इन केंद्रों की संख्या नहीं बढ़ाई और क्या दिन में एक बार खाना देना ही पर्याप्त है?

जन आहार योजना
दूसरी योजना सरकार ने वर्ष 2010 में जन आहार योजना शुरू की। मकसद, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को सस्ता, साफ सुथरा व स्वास्थ्यवर्धक भोजन 15 रुपये में उपलब्ध कराना था। इसमें चावल, रोटी, दाल, राजमा, कढ़ी, पूरी, हलवा आदि के साथ एक हजार कैलोरी का भोजना उपलब्ध कराया जाना था, लेकिन जागरण टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक मीनू में शामिल हरी सब्जी व सलाद जन आहार स्टालों पर कम ही देखने को मिलते हैं। लोगों को पतली दाल मिलती है और मौसमी सब्जियां नहीं होती। स्टालों पर रायता, खीर आदि मीनू में न होने के बाद भी अलग से बेचे जाते हैं। थाली में खाना कम होता है और मांगने पर अलग से पैसे चुकाने पड़ते हैं।
अब फूड बैंक की योजना
अब सरकार दिल्ली में फूड बैंक स्थापित करने की योजना पर काम कर रही है। दिल्ली फूड बैंक के लिए एसएमएस हेल्पलाइन नम्बर-58888 शुरू किया गया है, लेकिन अभी यह बैंक पका पकाया भोजन नहीं लेता। फूड बैंक के अधिकारी बताते हैं कि बैंक की स्थापना के पहले माह में 1500 परिवारों को राशन दिया गया है।

कहां जाता है बचा हुआ खाना
अभी दिल्ली में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि होटल, रेस्टोरेंट या समारोह के दौरान बचे हुए खाने को जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा सके। फूड बैंक के अधिकारी बताते हैं कि पके हुए भोजन को चार घंटे के भीतर तक लोगों तक पहुंचाना चुनौती है, लेकिन इस पर काम किया जा रहा है। होटल ही नहीं, बल्कि कारपोरेट कैंटीनों से संपर्क किया गया है और एक रूपरेखा तैयार की जा रही है ताकि जरूरतमंदों को समय पर खाना पहुंचाया जा सके। दिल्ली होटल महासंघ के अध्यक्ष अरुण गुप्ता कहते हैं कि होटलों में बचा हुआ खाना स्टाफ को दिया जाता है।

बुजुर्गों से छूट रही है आसमान की ओर बढ़ती दिल्ली की डोर



जमीन कम पड़ी तो दिल्ली आसमान की ओर बढऩे लगी है, लेकिन ऊध्र्वाकार विकास के इस नए फ्रेम में हम बुजुर्गों को जगह देना भूल गए। दिल्ली में बहुमंजिला इमारतों की तादात तो बढ़ रही है तो इनमें से ज्यादातर चार मंजिल तक के इमारतों में लिफ्ट नहीं है, इस कारण बुजुर्गों को अपने फ्लैटों में बंद होकर रहना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि इन इमारतों में लिफ्ट को लेकर कानून नहीं है, लेकिन दिल्ली का अनियोजित विकास बुजुर्गों की इस सुविधा की राह पर आड़े आ रहा है।
पश्चिम के शहरों से प्रभावित युवाओं को दिल्ली एनसीआर की यह बदलती छवि तो खूब भा रही है, लेकिन कोई लगभग 70 साल की वृद्धा कुसुम लता से पूछे कि तीसरी मंजिल पर रहना उनको कितना सुहाता है। वह कई-कई दिन तक अपने घर से बाहर नहीं निकल पाती। उनके जैसे बुजुर्गों को दिल्ली-एनसीआर का यह चलन सुहा कम, दर्द ज्यादा दे रहा है।
दिलचस्प यह है कि दिल्ली-एनसीआर के विस्तार और विकास की अगली सारी योजनाएं ऊध्र्वाकार ही हैं। दिल्ली के मास्टर प्लान-2021 में दिल्ली के ऊध्र्वाकार विस्तार की ही संभावनाएं जताई गई हैं।
टाउन प्लानर्स का कहना है कि बिल्डिंग प्लान में प्रावधान है कि 15 मीटर से ऊंची बिल्डिंग में लिफ्ट लगाना अनिवार्य है और कोई सोसायटी 15 मीटर से नीचे वाली बिल्डिंग में लिफ्ट लगाना चाहते हैं तो उसे रोका नहीं जाता, बल्कि डीडीए द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है। यह अलग बात है कि डीडीए की अपनी बहुमंजिला इमारतों में लिफ्ट नहीं है।
इसके अलावा लगभग 70 फीसद अनियोजित तरीके से बसी दिल्ली में यह नियम कारगर नहीं हैं। जितनी भी अनियोजित कालोनियां हैं, वहां फ्लोर-वाइज फ्लैट बन रहे हैं।  हाल ही में अर्थराइटिस फाउंडेशन आफ इंडिया (एएफआई) के अध्ययन में यह बात सामने आ चुकी है कि दूसरी मंजिल या उससे ऊपर रहने वाले बुजुर्ग कई कई दिन तक नीचे उतर नहीं पाते। इससे ये बुजुर्ग कई तरह की बीमारियों और अवसाद के शिकार हो रहे हैं।
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अर्थराइटिस फाउंडेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष एवं कैलाश अस्पताल के वरिष्ठ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशील शर्मा बताते हैं कि भूतल से ऊपर की मंजिल में रहना बुजुर्गों के लिए कष्टकारी होता है और जैसे जैसे उम्र बढ़ती है तो सीढिय़ों से उतरना-चढऩे के कारण घुटनों पर असर पड़ता है। बुजुर्गों के लिए तो भूतल पर ही रहना आसान होता है।
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डीडीए के प्लानिंग कमिश्नर रह चुके ए.के. जैन कहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर का ऊध्र्वाकार विस्तार तो अब जरूरत के साथ साथ मजबूरी बन गया है, लेकिन ऐसे में हम बुजुर्गों को नहीं भूल सकते और जहां तक संभव हो, लिफ्ट का प्रावधान किया जाना चाहिए।
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हो ही गया पानी का 'निजीकरण




राज्य ब्यूरो नई दिल्ली
दिल्ली के तीन प्रमुख इलाकों में पानी का वितरण निजी कंपनियों को दे दिया गया है। पानी के इस निजीकरण की प्रक्रिया को बिजली के निजीकरण से अलग केंद्र सरकार के फार्मूले पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) पर आधारित बताया जा रहा है, इसीलिए  स्वयं मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सोमवार को दिल्ली सरकार के इस फैसले पर अंतिम मुहर लगवाने योजना आयोग जाएंगी।
इस प्रोजेक्ट को शुक्रवार को बोर्ड की अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की अध्यक्षता में मंजूरी दी गई। इस बैठक में मालवीय नगर, महरौली और वसंत विहार में पानी का वितरण का काम तीन अलग अलग निजी कंपनियों को सौंपने का फैसला लिया गया।
मालवीय नगर प्रोजेक्ट पर जल बोर्ड का लगभग 519 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। यह पैसा कंपनियों को दिया जाएगा, जो पानी की पाइप लाइन बदलेंगी और दो भूमिगत जलाशय (यूजीआर) बनाएगी। इन कंपनियों को मुफ्त पानी दिया जाएगा और ये कंपनियां लोगों से बिल वसूल कर जल बोर्ड को जमा कराएंगी। कंपनियां कुल राजस्व का 30 फीसद कम जमा करा सकती हैं, यानी यह माना गया है कि 30 फीसद लाइन लॉस होगा, जो आने वाले सालों में शून्य रह जाएगा। इस परियोजना के तहत कंपनियों को 12 साल के लिए आपरेशन एंड मेंटीनेंस का काम सौपा गया है।
इसी तरह वसंत विहार और महरौली के लिए जल बोर्ड 216 करोड़ रुपये कंपनियों को देगा। कंपनियों को 4.11 रुपये प्रति किलोलीटर ऑपरेटिंग शुल्क के रूप में भुगतान किया जाएगा। यहां भी कंपनियां पानी का वितरण करेंगी।
जल बोर्ड के मुताबिक इन परियोजनाओं को लागू करने के मकसद इन इलाकों में 24 घंटे सातों दिन पानी उपलब्ध कराना है। इन तीनों क्षेत्र को एक मॉडल के रूप में अपनाया जा रहा है, अगर ये तीनों परियोजनाएं सफल रहती हैं तो पूरी दिल्ली में ऐसी ही परियोजनाओं को अमली जामा पहनाया जाएगा।
इसे पानी का निजीकरण नहीं कहा जाना चाहिए। पानी के शुल्क में बदलाव को लेकर कंपनियों का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा, न ही कंपनियों को कोई संपत्ति नहीं सौंपी जाएगी। कंपनियों से केवल पानी का वितरण कराया जाएगा।
इसके अलावा बोर्ड ने सीवर सफाई के लिए 33 जेटिंग मशीनों को मंजूरी दी गई। इस पर लगभग 30 करोड़ 15 लाख रुपये का खर्च आएगा।


महंगाई के साथ-साथ बढ़ेगा पानी का बिल!
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राजू सजवान, नई दिल्ली
पानी के वितरण में सरकार के साथ निजी भागीदारी (पीपीपी) अपनाने के बाद संभव है कि लोगों को महंगाई दर के हिसाब से पानी की कीमत चुकानी पड़े। दिल्ली में अपनाए जा रहे नागपुर मॉडल के मुताबिक पानी का वितरण कर रही निजी कंपनी महंगाई दर में हो रहे बदलाव के आधार पर अपने शुल्क में वृद्धि करा सकती है।
नागपुर में पेयजल व्यवस्था नागपुर नगर निगम के पास है, जिसने ऑरेंज सिटी वाटर लिमिटेड को वितरण का काम सौंपा हुआ है। करार के मुताबिक नागपुर नगर निगम निजी कंपनी को बतौर ऑपरेशन एंड मेंटीनेंस (ओएंडएम) शुल्क के रूप में आठ रुपये प्रति किलोलीटर की दर से भुगतान करेगा। नागपुर नगर निगम की इंजीनियरिंग कंसलटेंट कंपनी डीआरए कंसलटेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक दिनेश राठी के मुताबिक करार में यह भी स्पष्ट है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित महंगाई दर के आधार पर ओएंडएम शुल्क में वृद्धि हो जाएगी। हालांकि लोगों से वसूले जाने वाले पेयजल शुल्क पर इसका कोई असर तब तक नहीं पड़ेगा, जब तक नागपुर नगर निगम कोई फैसला न ले ले। दिनेश राठी ही दिल्ली के मालवीय नगर प्रोजेक्ट के भी कंसलटेंट हैं, लेकिन उन्होंने दिल्ली में होने वाले करार के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। इस मामले में दिल्ली जल बोर्ड का कहना है कि लोगों से वसूले जाने वाले पेयजल शुल्क का निर्धारण जल बोर्ड ही करेगा और ऑपरेटर (निजी कंपनी) को भुगतान जल बोर्ड करेगा।जानकारों का कहना है कि यह सही है कि प्राइवेट कंपनी के शुल्क में महंगाई दर के मुताबिक वृद्धि का सीधा असर लोगों पर नहीं पड़ेगा, लेकिन संभव है कि ऑपरेटर का शुल्क बढऩे पर जल बोर्ड लागत बढऩे का तर्क देकर लोगों से वसूले जाने वाले पेयजल शुल्क में वृद्धि कर दे, क्योंकि ऐसा ही बिजली कंपनियां और दिल्ली बिजली नियामक आयोग ने भी किया है। 
इतना ही नहीं, आपरेटर को जो भी पैसा दिया जाएगा, वह जल बोर्ड का होगा, यानी जल बोर्ड द्वारा किसी न किसी मद के माध्यम से जनता द्वारा इक_ा किया गया पैसा ही आपरेटर को दिया जाएगा। 
दिल्ली में पानी के पीपीपी प्रोजेक्ट का गहन अध्ययन कर रही संस्था वाटर सिटीजन्स फ्रंट फॉर वाटर डेमोक्रेसी के संयोजक एस.ए. नकवी बताते हैं कि जल बोर्ड ने निजी कंपनी को 10.64 रुपये प्रति किलोलीटर का भुगतान करने की योजना बनाई है। इसके अलावा निजी कंपनी को दो साल तक बिजली पानी और अन्य सेवाएं मुफ्त देने का भी प्रावधान है। 

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

क्रांति या राजनीति

जो लोग यह कह रहे थे कि अन्‍ना आंदोलन किसी क्रांति का आगाज है। उन लोगों से फिर मैं यह कह रहा हूं कि भीड से किसी क्रांति की उम्‍मीद नहीं करनी चाहिए। जो भीड अन्‍ना के समर्थन में उमड रही थी, उससे कुछ खास उम्‍मीद कम से कम मुझे नहीं थी। क्रांति कैडर करते हैं और अन्‍ना को अभी कैडर बनाने का मौका ही नहीं मिला, जो शायद अब मिल सकता है। अगर राजनीतिक दल बनाया जाए तो कैडर बनेगा और कैडर से ही किसी तरह की क्रांति भी आ सकती है, जिस क्रांति की तैयारी अभी तक हो रही थी, उससे आप सरकार तो बदल सकते थे, लेकिन मानसिकता नहीं, कांग्रेस के बाद भाजपा आ जाती, जिसकी मानसिकता में कोई खास फर्क नहीं है, इस बदलाव के बाद भी आप कोई विकल्‍प नहीं दे पाते, परंतु अब यदि अन्‍ना और उनके समर्थक सफल रहते हैं तो कम से कम जनता को विकल्‍प तो देंगे ही, वरना तो ये लोग फिर से किसी बहरूपिये नेता के जिम्‍मे जनता को छोड कर चल देते या फिर किसी नये आंदोलन की तैयारी में जुट जाते ।
एक साथी ने सवाल किया कि बात तो आपकी सही है सर पर क्‍या गारंटी है अन्‍ना टीम को विकल्‍प देकर हमारा भरोसा नहीं टूटेगा, क्‍या आपको नहीं लगता कि अन्‍ना टीम अपनी राजनैतिक जमीन तैयार करने में जुटी है"
मेरा जवाब 
तो क्‍या बुराई है, अगर तुम्‍हे इतनी भी समझ नहीं है कि अन्‍ना टीम हमें धोखा देने वाली है तो यह तुम्‍हारी गलती है, वैसे भी अब तक जितनी बार भी वोट किया है तो बेवकूफी ही की है, अगर एक बार और कर दोगे तो तुम्‍हारा क्‍या जाएगा, इस बहाने दुश्‍मनों का चेहरा पहचाना जाएगा

शनिवार, 28 जुलाई 2012

भीड़ में गया सो भाड़ में गया



मेरे अखबार मं एक सेवा संपादक था, नाम था गुलशन।  उसने एक दिन बड़े सहज भाव से कहा कि सर, जो भीड़ में शामिल होते हैं वे भाड़ में चले जाते हैं, मैने हैरानी भरे स्वर में पूछा कि कैसे तो वह और सहज होते हुए बोला, तभी तो कहा जाता है भीड़भाड़ , करीब 10 साल पहले की यह बात मुझे हर बार हंसने के लिए मजबूर कर देती है, जब भी मैं दिल्ली में गाहे बगाहे भीड़ को देखता हूं। कभी राजनीतिक रैली, कभी प्रधानमंत्री की रैली, कभी विश्व हिंदू परिषद की रैली या कभी धर्म गुरु के प्रवचन कार्यक्रम में भीड़ देख कर हर बार हंसी आ ही जाती है।
खैर, रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन के वक्त भी मैंने भीड़ देखी थी और उस समय भीड़भाड की उस परिभाषा पर मैं हंसने की बजाय सोचने के लिए मजबूर था, क्या यह भीड़ भी भाड़ में जाने के लिए आई है, उस दिन तो किसी तरह खुद को समझा लिया था कि शायद नहीं यह भीड़ किसी परिवर्तन की उम्मीद कर रही है, पर अब क्या सोचूं खुद को कोई तसल्ली नहीं दे पा रहा हूं। जंतर मंतर पर भीड़ नहीं आई है।
वैसे मैं खुद इस आंदोलन से कुछ ज्यादा सहमत नहीं हूं, पर मैं इतना जरूर चाहता हूं कि यह आंदोलन सफल हो, ताकि इस देश के हर भ्रष्ट व्यक्ति या भ्रष्ट तंत्र को यह अहसास हो कि इस देश में भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले लोग भी हैं और आंदोलन विफल होता है तो ये भ्रष्ट लोग खुश हो जाएंगे और इसका विरोध करने वाले मु_ी भर लोग मन मसोस कर रह जाएंगे या फिर भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बनने को मजबूर हो जाएंगे।
शायद गुलशन की ही बात सही थी कि भीड़ केवल भाड़ में जाने के लिए होती है, किसी ऐसे आंदोलन में शामिल होने के लिए नहीं, जिससे परिवर्तन की थोड़ी उम्मीद बंध जाए।

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

उसकी हंसी 

वो मुस्‍कराई थी आज 
मुझे देखकर 
उसके पीले पडते चेहरे पर 
हंसी की वजह तलाशता रहा
सोचा पूछ लूं
लेकिन फिर चुप हो गया
पर कौतूहल था
बहुत दिन बाद जो मुस्‍कराई थी
पर क्‍यों
कैसे पता करुं
फिर पूछ ही लिया
बोली -
बेटा,
आज तूने मुझे ध्‍यान से देखा
तो मन को अच्‍छा लगा
इसलिए चेहरे पर हंसी पर आ गई
खूब पाला पोसा 
पढाया लिखाया 
इतना बडा किया कि 
मैं उसे खिला संकू
पर फिर भी नहीं खिला पाया मैं 
पर उसे देखिए
वह जब से पैदा हुआ
तब से ही पाल रहा है
अपनी मां को
जन्‍म के पहले दिन ही
मां ने उसे गोद में उठाया
और खडी हो गई
शहर के चौराहे पर
उस मासूम के रोने की
आवाज सुन कई लोगों ने
बढाया था एक रुपया, दो रुपया
उसकी मां की ओर
बस तब से ही
उसकी मां ने भरपेट खाना शुरु किया
अगर रोना नहीं आता था उसे
तो चिकौटी काट कर रुला देती थी मां
ताकि पसीज जाए कोई ह्रदय
थोडा बडा हुआ तो
ढाबे का छोटू बन गया
और तब पाला मां को
और आज तक पाल रहा है .......

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

ब्रिक्स के मायने ...

ब्राजील, रूस, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका देशों के समूह ब्रिक्स की बैठक इन दिनों दिल्ली में हो रही है। कई अहम फैसले लिये जा रहे हैं। हालांकि मीडिया इतनी गंभीरता से नहीं ले रहा है, लेकिन यह तय है कि ये दो-तीन दिन 28 से 31 मार्च 2012 के दिन आने वाले सालों में याद रखे जाएंगे और इन दिनों का हवाला दिया जाएगा। ऐसा मुझे लगता है। अमेरिका की दादागिरी के खिलाफ इन पांच देशों ने जो फैसले लिये हैं, वे बेहद महत्वपूर्ण है। जैसे, ईरान से तेल खरीदना जारी रखना और डॉलर के मुकाबले पांच देशों की अपनी मुद्रा का चलन शुरू करना। इन फैसलों के मायने क्या रहेंगे। यह वक्त बताएगा। परंतु अब भारत को अमेरिका का पिठ्ठू कहने से पहले कुछ तो सोचना होगा। वरना तो पिछले कुछ सालों में भारत जो भी कर रहा था, वह उसे अमेरिका का पिठठू मानने के लिये बाध्य कर रहा था।