रविवार, 16 सितंबर 2018

उम्र से बाहर निकलिए, सुकून मिलेगा

मैं मेट्रो से उतरा और गेट की ओर बढ़ते हुए मेरा हाथ जेब में गया तो एक पर्ची हाथ लगी। देखा, फालतू पर्ची है। सोचा, डस्टबिन में डाल दूं, लेकिन अचानक मैंने उस पर्ची की गोल पुड़िया बना ली और उसे एक गेंद की तरह ऊपर उछाला। खुद भी उछलते हुए उस पर्ची को बैडमिंटन की शटल की तरह अपने से दूर फैंक दिया। कितनी दूर गई, यह देखा और उस पर्ची को सलीके से उठाया और डस्टबिन में डाल दिया।

मैं उस पर्ची को सलीके से डस्टबिन में भी डाल सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। जानते हैं, उस 1 से भी कम मिनट के समय में मैंने दो उम्र को जीने का प्रयास किया। करीब 5 से 10 सैकंड के लिए मैं 15 से 20 साल के अल्हड़ किशोर की उम्र में पहुंच गया। बिल्कुल उसकी तरह, मैंने एक पर्ची की पुड़िया बनाई और खेलने का प्रयास किया और उसके ठीक बाद मैं अपनी उम्र में पहुंच गया और सलीके से पर्ची को उठा कर डस्टबिन में डाल दिया।

मेरी हरकत आपको बेवकूफाना लग सकती है। अपनी उम्र से पीछे जाने की बेवकूफ कोशिश। लेकिन आप भी कभी ऐसा कीजिए। हो सकता है कि आप ऐसा करते भी हों, जोर-जोर से बच्चों की तरह हंसना। बच्चों के बीच बच्चा बनने की कोशिश करना। यह सब आप अपनी उम्र से पीछे जाने के लिए करते हैं। यह बहुत जरूरी है। अपने आप से निकलना, बेशक कुछ समय के लिए ही सही। लेकिन आपको अपने आप से निकलना चाहिए।

आप जिस पेशे में हैं, जिस ओहदे में हैं, उसे हमेशा ओढ़े रखना कोई समझदारी नहीं है। आप जब उम्र दराज हो जाते हैं तो उछलते-कूदते किशोर या युवा आपको अच्छे नहीं लगते। खासकर कोई लड़की हो तो आप इतने सामाजिक हो जाते है कि आपको लड़की की हंसी में बेशर्माई दिखाई देती है। उस समय कुढ़ने की बजाय सोचिए कि अगर आप भी उस उम्र में होते तो क्या करते। निकलिए अपने आप से बाहर, बेहद सुकून मिलेगा।


आपको अपने से कम ओहदे का आदमी भी नहीं सुहाता। उसकी मस्ती आपको परेशान कर देती है। उसके काम करने का तरीका आपको नहीं भाता। लेकिन कुछ देर के लिए आप अपने ओहदे से बाहर निकलिए, उसके जैसा होने का प्रयास कीजिए। थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन आपको लगेगा कि आप हल्के हुए हैं।
#फ्री_का_ज्ञान 

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

#फ्री_का_संपादक 3

#फ्री_का_संपादक

12 सितंबर 2018 के अखबारों में छपी कि हरियाणा सरकार ने बिजली के दाम कम कर दिए हैं। कुछ अखबारों का शीर्षक था, हरियाणा में दिल्ली से सस्ती हुई बिजली। दसअसल, यह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्‌टर की  घोषणा पर आधारित एक खबर थी, जिससे ऐसा लग रहा था कि हरियाणा सरकार ने कीमतें कम कर दी हैं। इस खबर में यह भी कहा गया था कि पहली बार बिजली निगम को 200 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है। लेकिन खबर लिखते या संपादित के वक्त यह ध्यान नहीं रखा गया कि आखिर सरकार यह फैसला कैसे ले सकती है।

देश में इलेक्ट्रिसटी एक्ट 2003 के तहत सभी प्रदेशों में बिजली निगम या कंपनियां बिजली उत्पादन, वितरण और आपूर्ति करती हैं। बिजली की दरों का निर्धारण राज्यों में बने बिजली नियामक आयोग करते हैं। तो कैसे सरकार कीमतें कम करने की घोषणा कर सकती हैं? यह सवाल इस खबर में पूछा ही जाना चाहिए था।

अगले दिन यानी 13 सितंबर के अखबार में यह बताया गया कि हरियाणा सरकार बिजली निगमों को 600 करोड़ रुपए की सब्सिडी देंगी, जिससे लोगों के पास जो बिल पहुंचेंगे, उनमें सब्सिडी घटा कर भेजा जाएगा। दरअसल, यही खबर थी, जिसे उसी दिन यानी कि मुख्यमंत्री की घोषणा के साथ ही लिखा जाना चाहिए था कि लोगों के बिजली के बिल कम करने के लिए सरकार सब्सिडी देगी। ऐसा ही, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार करती है। बिजली की दरों का निर्धारण करना या सरचार्ज लगाना-कम करना सरकार का काम नहीं है। इस खबर में यह भी बताया जाना चाहिए था कि चूंकि सब्सिडी पब्लिक मनी है तो जनता का पैसा ही जनता को लौटाया जा रहा है। ऐसे में, बिजली निगमों को हो रहे 200 करोड़ रुपए के फायदे पर सवाल उठाए जा सकते थे।