मालिक कम पैसे देना चाहता है तो वह ऐसे व्यक्ति को पत्रकार बना देता है जो मूलतया पत्रकार नहीं होता उसका पढने लिखने से नहीं बल्कि मालिक को खुश करने से मतलब होता है और मालिक कम संपादक भी उसकी स्टोरी को प्रमुखता से छाप कर पढे लिखे पत्रकार को करारा जवाब देने की कोशिश करता है, मालिक यह दर्शाना चाहता है कि वह चाहे तो गधे तो भी पत्रकार बना सकता है। बस यहीं से शुरू होता है हिंदी पत्रकारिता का दुर्भाग्य, जो सालों साल से चल रहा है ।
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