आज स्कूटी में पंचर हो गया। पंचर अगले पहिए पर था और पहिया भी ट्यूबलेस
नहीं था, इसलिए दो पंचर वालों ने पंचर लगाने से मना कर दिया। तीसरे के पास गया तो उसने
भी छूटते ही बोला। ‘टायर, ट्यूबलेस है?’ मैंने मना कर दिया तो उसने भी मना कर दिया कि
ट्यूब वाले टायर का पंचर नहीं लगेगा। फिर थोड़ा सोच कर बोला, ‘लग तो जाएगा, लेकिन
60 रुपए लगेंगे’। सुनते ही पहले मैं
झुंझलाया, लेकिन फिर जवाब दिया, 70 रुपए दूंगा। वह तैयार हो गया। अगले पहिया
में पंचर लगाना मेहनत का काम है। पूरा खोलना पड़ता है, जबकि ट्यूबलेस में बिना
खोले दो मिनट में पंचर लग जाता है। उसे लगभग 15 मिनट लग गया। पसीने से तर-बतर हो
गया। मैं तब तक सोचता रहा कि वह 60 रुपए लेगा या 70 रुपए। मैंने 100 रुपए का नोट
पकड़ाया तो उसने 30 रुपए दे दिए। वहां से निकल कर मैं सोचता रहा कि वह मुझे
घमंडी समझ रहा होगा या बेवकूफ, लेकिन मुझे तसल्ली थी कि मैंने उसकी मेहनत जाया
नहीं जाने दी और अपनी औकात के हिसाब से थोड़ा अतिरिक्त देकर शायद ठीक ही किया।
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