शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

नोटबंदी, जीएसटी से हासिल होगा क्‍या

राजू सजवान

देश में 1000 और 500 रुपए के नोट बंद होने की घटना को पूरे दस महीने बीत चुके हैं और लगभग दस माह की ही कवायद के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों में जमा हुए बंद नोटों की भी गिनती पूरी कर ली। रिजर्व बैंक ने बताया कि नोटबंदी से पहले लगभग 15.44 लाख करोड़ रुपए के 500 और 1000 रुपए के नोट चलन में थे और इसमें से 15.28 लाख करोड़ रुपए के नोट बैंकों में जमा हो गए। इसके साथ ही नोटबंदी के बाद किए जा रहे दावे खोखले साबित हुए, जिसमें कहा गया था कि ब्‍लैक मनी के रूप में जमा 3 से 4 लाख करोड़ रुपए बैंकों में वापस नहीं आएंगे। हालांकि उस समय सरकार की ओर से कोई अधिकृत बयान नहीं दिया गया था, लेकिन सवाल यही उठता है कि अगर 99 फीसदी मुद्रा वापस आ गई है तो ब्‍लैक मनी कहां है।

मैंने पहले ही कह दिया था कि नोटबंदी से ब्‍लैक मनी पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। तब सवाल फिर उठने लगा है कि आखिर सरकार का मकसद क्‍या है। दरअसल सरकार का सारा ध्‍यान देश में ऑर्गनाइज्‍ड बिजनेस को स्‍थापित करना है। सरकार ने पिछले एक साल में तीन बड़े कदम उठाए हैं। इनमें नोटबंदी के बाद रियल एस्‍टेट रेग्‍युलेशन एक्‍ट (रेरा) और बाद में जीएसटी। सरकार के इन तीनों ही फैसलों से छोटे व्‍यापारियों को दिक्‍कत का सामना करना पड़ा है। हालांकि दिक्‍कत उनको भी हुई है, जो मोटा कमा रहे थे, लेकिन सरकार को कुछ नहीं दे रहे थे, लेकिन उनके साथ साथ छोटा कारोबारी भी पिसा है। सरकार उससे भी राजस्‍व इकट्ठा करना चाहती है और राजस्‍व इकट्ठा करने से कोई दिक्‍कत भी नहीं होनी चाहिए। बस दिक्‍कत यह है कि जब छोटे कारोबारी को भी उसी एमआरपी (मैक्सिमम रिटेल प्राइस) पर सामान बेचना पड़ेगा, जिस एमआरपी पर बड़े मॉल में डिस्‍काउंट के साथ सामान मिल रहा होगा तो छोटे कारोबारी कितना दिन अपनी दुकान को बचा कर रख सकेगा। जहां तक राजस्‍व की बात है तो बड़े व्‍यापारी सरकार को राजस्‍व देने की बजाय किसी सीए या एकाउंटेंट को तनख्‍वाह पर रख कर चोरी के रास्‍ते ढूंढ़ लेते हैं और यही काम छोटे कारोबारी को करना पड़ेगा तो उसके लिए सीए की तनख्‍वाह निकालनी भारी पड़ जाएगी।

नोटबंदी और जीएसटी की ही तरह रेरा ने भी छोटे बिल्‍डर्स और प्रॉपर्टी डीलर्स की मुसीबत बढ़ा दी है। हालांकि सरकार के इस फैसले से घर खरीददारों को कई ऐसे हक मिले हैं, जो अब तक उनके पास नहीं थे। वह अपना घर खरीदने से पहले उसकी ऑनलाइन पड़ताल कर सकता है, परंतु दिक्‍कत यह है कि घर खरीददारों को लूटने का काम जितना छोटे बिल्‍डर्स ने किया है, उतना ही बड़े बिल्‍डर्स ने भी किया है। बावजूद इसके, सरकारें बड़े बिल्‍डर्स के पक्ष में खड़ी हो जाती हैं, क्‍योंकि उनसे चुनावी चंदा मिलता है। ऐसी स्थिति में, जब यह माना जा रहा है कि रेरा पूरी तरह लागू होने के बाद छोटे बिल्‍डर्स खत्‍म हो जाएंगे तो सवाल यह उठता है कि क्‍या बड़े बिल्‍डर्स कम आमदनी वाले लोगों को सस्‍ते मकान बना कर देंगे।

ऑर्गनाइज्‍ड बिजनेस का चलन विकसित देशों में है और विश्‍व बैंक जैसी अंतर्राष्‍ट्रीय संस्‍थाएं चाहती हैं कि भारत भी इस फॉर्मल इकोनॉमी की तर्ज पर काम करे। लेकिन इसका एक बड़ा खतरा यह है कि ऑर्गनाइज्‍ड बिजनेस की बदौलत देश में कॉरपोरेटीकरण बढ़ेगा और दुनिया भर में कॉरपोरेट्स पर ऑर्गनाइज्‍ड क्राइम में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं। यदि भारत में भी ऐसा होता है तो 22 फीसदी गरीबी वाले इस देश के लिए यह अच्‍छा नहीं होगा। 

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