गुरुवार, 13 सितंबर 2018

#फ्री_का_संपादक 3

#फ्री_का_संपादक

12 सितंबर 2018 के अखबारों में छपी कि हरियाणा सरकार ने बिजली के दाम कम कर दिए हैं। कुछ अखबारों का शीर्षक था, हरियाणा में दिल्ली से सस्ती हुई बिजली। दसअसल, यह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्‌टर की  घोषणा पर आधारित एक खबर थी, जिससे ऐसा लग रहा था कि हरियाणा सरकार ने कीमतें कम कर दी हैं। इस खबर में यह भी कहा गया था कि पहली बार बिजली निगम को 200 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है। लेकिन खबर लिखते या संपादित के वक्त यह ध्यान नहीं रखा गया कि आखिर सरकार यह फैसला कैसे ले सकती है।

देश में इलेक्ट्रिसटी एक्ट 2003 के तहत सभी प्रदेशों में बिजली निगम या कंपनियां बिजली उत्पादन, वितरण और आपूर्ति करती हैं। बिजली की दरों का निर्धारण राज्यों में बने बिजली नियामक आयोग करते हैं। तो कैसे सरकार कीमतें कम करने की घोषणा कर सकती हैं? यह सवाल इस खबर में पूछा ही जाना चाहिए था।

अगले दिन यानी 13 सितंबर के अखबार में यह बताया गया कि हरियाणा सरकार बिजली निगमों को 600 करोड़ रुपए की सब्सिडी देंगी, जिससे लोगों के पास जो बिल पहुंचेंगे, उनमें सब्सिडी घटा कर भेजा जाएगा। दरअसल, यही खबर थी, जिसे उसी दिन यानी कि मुख्यमंत्री की घोषणा के साथ ही लिखा जाना चाहिए था कि लोगों के बिजली के बिल कम करने के लिए सरकार सब्सिडी देगी। ऐसा ही, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार करती है। बिजली की दरों का निर्धारण करना या सरचार्ज लगाना-कम करना सरकार का काम नहीं है। इस खबर में यह भी बताया जाना चाहिए था कि चूंकि सब्सिडी पब्लिक मनी है तो जनता का पैसा ही जनता को लौटाया जा रहा है। ऐसे में, बिजली निगमों को हो रहे 200 करोड़ रुपए के फायदे पर सवाल उठाए जा सकते थे। 

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