रविवार, 7 दिसंबर 2014

खून बहा पर किसके लिए ...

कुछ माएं रो रही हैं
कुछ बहने भी हैं
बहुत से ऐसे लोग भी हैं
जो इनके कुछ नहीं हैं
पर फिर भी रो रहे हैं
क्‍योंकि ...
फिर बहा है
खून के बदले खून
पर किसके लिए
जमीन के एक टुकडे़ के लिए
या उनके लिए जो
उस टुकड़े पर काबिज होकर
करना चाहते हैं व्‍यापार
बनना चाहते हैं
धनी और धनी
उन्‍हें न तो खून दिखता है
और न सुनाई देता है
मांओ-बहनों का क्रंदन
वह तो बस
अपने गुलामों को निर्देश देते हैं
जो कुर्सी पर बैठकर
हस्‍ताक्षर करते हैं कई मौतों के फरमान पर
न जाने कब थमेगा यह सिलसिला

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