सोमवार, 7 नवंबर 2016

एक अध्याय का अंत



जिस शहर में रहता हूं, उसे रिफ्यूजियों का शहर भी कहा जाता है। यानी कि विभाजन के बाद पाकिस्ताान से आए लोगों को इस शहर में बसाया गया। उसके बाद शहर को 66 साल से अधिक समय हो गया है। इस दौरान शहर ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और हर उतार चढ़ाव के साक्षी थे, गुरुबचन सिंह। जिनका आज निधन हो गया। जब वह इस शहर में आए थे तो 24-25 साल के थे। खाली पड़े खेतों को शहर में तब्दील करने के लिए जो कुछ हुआ, उसमें उनकी प्रमुख भागीदारी थी।
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस शहर, जिसे फरीदाबाद कहा जाता था को न्यू टाउन फरीदाबाद में तब्दील करने के लिए फरीदाबाद विकास बोर्ड बनाया और बोर्ड के एक सदस्य के तौर पर गुरुबचन सिंह को भी तैनात किया गया। गुरुबचन सिंह जैसे लोगों ने अपने सिर पर ईंटें ढो-ढोकर न्यू टाउन फरीदाबाद की न केवल नींव रखी, बल्कि एक अच्छे खासे शहर के रूप में तब्दीेल कर दिया। उन जैसे लोगों ने इसे जल्द ही एक इंडस्ट्रियल टाउन की पहचान के रूप में स्थापित कर दिया।
इसके बाद से लेकर अब तक इस शहर ने तरक्की के कई आयाम छुए तो फिर धीरे-धीरे शहर औद्योगिक विकास की दौड़ में पिछड़ने लगा। वहीं, शहर ने सिविक एडमिनिस्ट्रेशन के कई दौर देखे। पहले विकास बोर्ड, फिर कॉम्लेक्स एडमिनिस्ट्रेशन और फिर नगर निगम । परंतु इन सब पर बारीक नजर रखने की जैसे गुरुबचन सिंह को आदत सी पड़ गई थी। शहर के विकास की हर कड़ी पर गुरुबचन सिंह न केवल नजर रखते थे, बल्कि अपनी विशेषज्ञ राय भी हर उस व्युक्ति को देने की कोशिश करते थे, जो उन्हें लगता था कि वह शहर के विकास को लेकर गंभीर है। हालांकि जो लोग केवल गंभीर दिखने का नाटक करते थे, वे गुरुबचन सिंह की चिंता से दूरी बना कर निकल जाते थे।
मेरा भी गुरुबचन सिंह से गहरा लगाव था। कई बार उनके साथ घंटों-घंटों बैठकर उनसे शहर के बनने-बिगड़ने की कहानी सुनता था। बड़ा मन था कि इस शहर के संघर्ष, चरमोत्कोर्ष और कमियों पर एक किताब लिखूं। उसके लिए कई बार गुरुबचन सिंह जी के साथ बैठने का बड़ा मन करता था, लेकिन व्यामवसायिक व्यबस्तकता के चलते यह काम शुरू तक नहीं कर पाया और आज उनके जाने की खबर सुनी।
मुझे लगता है कि उनके जाते ही शहर का एक अध्याय खत्म हो गया है। शहर के जन्म के वक्त से लेकर अब तक पूरे होशो-हवास में जिसने शहर को देखा, जिया और लोगों को बताया कि इस शहर का गौरवशाली इतिहास क्या रहा है, उनमें शायद गुरुबचन सिंह ही अकेले शख्स थे, जो अब तक जिंदा थे। उनके समय का शायद कोई और हो भी सकता है, लेकिन उनके जितना सक्रिय, विचारवान और शहर के प्रति निष्ठावान कोई और ही हो।



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