रविवार, 11 दिसंबर 2016

नोटबंदी : आर्थिक क्रांति या आपातकाल


यह लेख उत्‍तराखंड से प्रकाशित उत्‍तर जन टुडे के लिए लिखा है। वहां प्रकाशित होने के बाद अपने ब्‍लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूं

8 नवंबर 2016, रात 8.30 बजे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक सभी न्‍यूज चैनल पर दिखाई देने लगे और अपने चि‍रपरिचित अंदाज में देश की जनता को संबोधित करने लगे। कुछ देर तक अपनी उपलब्धियों के बारे में बताने के बाद उन्‍होंने घोषणा की कि देश में चल रहे 500 और 1000 के नोट का चलन बंद किया जाता है और दो दिन के भीतर सरकार 500 और 2000 के नोट बाजार में लेकर आएगी। उनकी इस घोषणा से पूरा देश सन्‍न रहा गया। जिसने भी यह सुना, वह अचानक ठहर सा गया। लोग एटीएम की ओर भागे, ताकि अपने जरूरी खर्च के लिए 100-100  रुपए के नोट निकाले जा सकें। रात 12 बजे के बाद एटीएम ने भी काम करना बंद कर दिया।
इस घटना को बीते लगभग 20 दिन हो चुके हैं, लेकिन अब तक लोग यह नहीं समझ पाए हैं कि सरकार के इस फैसले का असर क्‍या होगा। हर कोई अपनी अपनी समझ से फैसले के परिणामों को लेकर दावे कर रहा है। समर्थक इस घटना को एक आर्थिक क्रांति बता रहे हैं तो विरोधी आर्थिक आपातकाल। सबसे सुखद बात यह है कि भारी परेशानियों के बावजूद जनता ने संयम का जो परिचय दिया है, वह भारत में काफी कम देखने को मिलता है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी क्‍या जरूरत थी कि प्रधानमंत्री को बेहद गुप्‍त तरीके से यह फैसला लेना पड़ा। प्रधानमंत्री स्‍वयं कह रहे हैं कि देश में ब्‍लैकमनी इतनी बढ़ गई है कि उस पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी हो गया था। साथ ही, देश में नकली करंसी भी अर्थव्‍यवस्‍था के लिए खतरा बनती जा रही थी। इसके लिए बड़े नोट को बदलना बेहद जरूरी हो गया था।
क्‍या सच में, प्रधानमंत्री की मंशा ब्‍लैकमनी या नकली करंसी पर अंकुश लगाना है। या प्रधानमंत्री के इस फैसले का कोई छिपा मकसद है। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि इस फैसले से लोगों को कुछ समय के लिए परेशानी होगी, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम अच्‍छे होंगे। प्रधानमंत्री ने देशवासियों से 50 दिन का समय मांगा है और दावा किया है कि 50 दिन बाद हालात सुधर जाएंगे। ऐसे में, हमें 50 दिन की परेशानियों की बात नहीं ही करनी चाहिए, क्‍योंकि आजादी के बाद से देश को एक दीर्घकालिक एवं ठोस नीति की जरूरत रही है, जबकि अब तक सरकारें जनता को खुश करने वाली अल्‍पकालिक नीतियां ही अपनाती रही हैं।
तो फिर बात दूरगामी परिणामों पर ही होनी चाहिए। कहा यह जा रहा है कि बैंकों में तरलता बढ़ेगी। जिसके चलते बैंक न केवल लोन पर ब्‍याज दर कम करेंगे, बल्कि लोन देने की प्रक्रिया को आसान करेंगे। इसके अलावा नगद का चलन कम होने से ज्‍यादातर भुगतान बैंकिंग सिस्‍टम होगा और टैक्‍स का दायरा बढ़ जाएगा और सरकार के पास राजस्‍व बढ़ जाएगा और इस राजस्‍व से सरकार सामाजिक योजनाओं को और बेहतर ढंग से चला पाएगी। साथ ही, इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को बेहतर बनाने के लिए सरकार अपने खर्च की सीमाएं बढ़ा देगी, जिसका असर हर सेक्‍टर को मिलेगा और अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार होगा।
असल में देश में करीब 17 लाख करोड़ रुपए की करेंसी के सर्कुलेशन में 500 और एक हजार रुपए के नोट की हिस्सेदारी 86 फीसदी है। बाकी करेंसी की हिस्सेदारी मात्र 14 फीसदी है। इस करेंसी के बंद होने का ब्लैकमनी पर कितना असर पड़ेगाइसका पता अगले साल मार्च के बाद ही चलेगा, जब पुरानी करंसी के जमा कराने की समयसीमा समाप्त हो जाएगी और नए नोट पूरी तरह चलन में आ जाएंगे। कुछ लोग यह भी दावा कर रहे हैं कि इससे भारतीय रिजर्व बैंक की बैलेंस शीट सुधरेगी और उसे जो फायदा होगा, उसे वह सरकार को स्पेशल डिविडेंड के रूप में दे सकता है जिससे सरकार की वित्‍तीय स्थिति ठीक होगी और इससे सरकार लोक कल्याण योजनाओं पर ज्यादा पैसा खर्च कर सकेगी।
 लेकिन सवाल यह उठता है कि क्‍या सरकार के इस प्रचार को ज्‍यों का त्‍यों स्‍वीकार कर लेना चाहिए। क्‍या इस पर सवाल नहीं उठने चाहिए। इस फैसले को लागू करने को लेकर सरकार की अधूरी तैयारियां सबसे सामने हैं। इसके परिणाम के चलते न केवल पूरे देशवासियों को दिक्‍कतों का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि अर्थव्‍यवस्‍था पर भी असर पड़ा है। जहां तक दूरगामी परिणामों के तौर पर बैंकों में तरलता बढ़ने की बात है तो इसका एक परिणाम यह होगा कि बैंक बचत योजनाओं पर ब्‍याज दर कम कर देंगे, कई बैंक इसकी शुरुआत कर भी चुके हैं, जिसका सबसे अधिक नुकसान उन बुजुर्गों पर पड़ेगा, जो जिंदगी भर की कमाई बैंक में रख कर ब्‍याज राशि से अपना खर्च चलाते हैं। ऐसे में, सरकार को बचत पर ब्‍याज दर में कमी पर नजर रखनी होगी।
इसी तरह बैंकों में तरलता बढ़ने पर लोन पर ब्‍याज दर कम होगी। दावा तक यहां तक किया जा रहा है कि एक बार फिर से बैंक होम लोन की ब्‍याज दर 7 से 7.5 फीसदी तक पहुंच जाएगी और लोगों को घर मिलना आसान हो जाएगा। इंडस्‍ट्री एसोसिएशन्‍स भी मानती है कि बिजनेस के लिए बैंक कम ब्‍याज दर पर आसानी से लोन देंगे। इससे औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियां बढ़ेगी और अर्थव्‍यवस्‍था को इसका फायदा पहुंचेगा। ऐसे में, सवाल यह उठता है कि क्‍या ऐसे करते वक्‍त भारत उस दिशा में तो नहीं बढ़ रहा है, जहां 2008 में अमेरिका पहुंच गया था। आपको यदि याद हो तो 2008 में आए वैश्विक मंदी की वजह बैंक रहे थे। बैंकों ने लोगों की पेइंग कैपेसिटी से अधिक लोन दे दिया था, जब लोगों से वसूली नहीं हो पाई तो बैंक दिवालिए होने लगे, जिसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ा। हालांकि उसका असर भारत पर नहीं पड़ा, क्‍योंकि भारतीय बैंकों से लोन लेना आसान नहीं था। तो वैश्‍विक मंदी जैसे हालात से बचने के लिए सरकार को अभी से ठोस इंतजाम करने होंगे। इसके लिए सरकार को अभी उन बड़े कर्जदारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, जो सालें से बैंकों का अरबों रुपया नहीं दे रहे हैं, ताकि जनता को विश्‍वास हो जाए कि बैंकों में तरलता बढ़ने पर उन बड़े लोगों को ही फिर से कर्ज मिलने लग जाएगा, जो बाद में कर्ज नहीं लौटाते हैं।
इसी तरह दूसरी बात यह कही जा रही है कि इस सारी कवायद के बाद सरकार का राजस्‍व बढ़ जाएगा। लेकिन सरकार को यह विश्‍वास दिलाना होगा कि पब्लिक से इकट्ठा किया गया टैक्‍स के पैसे का दुरुपयोग नहीं किया जाएगा। इस पैसे से बनने वाले इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के प्रोजेक्‍ट्स का फायदा कुछ गिने चुने शहरी लोगों को नहीं होगा, बल्कि गांवों को भी इसका फायदा मिलेगा।
वहीं दूरगामी परिणाम के तौर पर कैशलेस इकोनॉमी की बात भी कही जा रही है, लेकिन इसके लिए सरकार की ओर से कोई तैयारी नहीं की गई। पिछले साल शुरू हुआ डिजिटल इंडिया अभियान भी पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। कुछ मेट्रो सिटीज के एक वर्ग विशेष के लोगों को छोड़ दें तो प्‍लास्टिक मनी का चलन लगभग न के बराबर है। प्‍लास्टिक मनी पर सर्विस टैक्‍स का भुगतान लोगों के लिए महंगा साबित हो सकता है। ऐसे में, सरकार को डिजिटल मनी के प्रचार-प्रसार पर अभी बहुत मेहनत करनी होगी और युद्ध स्‍तर पर काम करना होगा।
जहां तक बात ब्‍लैकमनी की है तो 1 दिसंबर को आयकर विभाग द्वारा पकड़े गए नए नोट के रूप में 4 करोड़ रुपए इस बात का प्रमाण है कि ब्‍लैकमनी का सिलसिला फिर से शुरू हो चुका है और जहां तक नकली करंसी की बात है तो बीटेक के कुछ छात्रों द्वारा 2 करोड़ रुपए के नकली नोट चलाने की खबर भी आ चुकी है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सरकार का यह फैसला आर्थिक क्रांति साबित होगा या आर्थिक आपातकाल, इसका जवाब फिलहाल दे पाना संभव नहीं दिखता। इसके लिए कुछ इंतजार तो करना ही होगा। 


- राजू सजवान



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