शनिवार, 18 जनवरी 2020

नो क्वेश्चन,प्लीज...

दो तीन दिन पहले की बात है। मैं अपने बेटे के स्कूल से निकल कर शहर (फरीदाबाद) के प्रमुख अजरोंदा चौक पर पहुंचा। यह चौक दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर है, जिसे अभी कुछ ही समय पहले टोल कंपनियों के माध्यम से न केवल चौड़ा कर खूबसूरत बना दिया गया, बल्कि एक के बाद एक कई फ्लाइओवर भी बन गए हैं।

ऊपर से गाड़ियां फुर्र से शाहजहां-मुमताज के ताज की ओर निकल जाती हैं, लेकिन शहर में प्रवेश करने वाले लोग नीचे बत्ती में फंस जाते हैं। इस दिन भी यहां चौक पर जाम लगा था, लेकिन इसकी वजह बत्ती से ज्यादा सड़क पर बह रहा सीवर का पानी था।

अब यह सवाल करना बिल्कुल भी लाजिम नहीं है कि राजमार्ग पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी सीवर के पानी निकासी का इंतजाम क्यों नहीं किया गया। (नोट: सवाल पूछना देशद्रोह की श्रेणी में आता है )। 

खैर, इसलिए मैंने खुद से भी सवाल नहीं पूछा और चुपचाप किनारे-किनारे बच-बचकर आगे बढ़ने लगा। 

आगे एक नौजवान, केवल कच्छा (अंग्रेजी में कहते हैं अंडरवियर) पहने बुरी तरह ठिठुरता दिखाई दिया। जो एक दीवार की ओट में कहीं से मद्धिम सी आती सूरज की रोशनी से धूप सेंकने की कोशिश कर रहा था। 

ऐसा होना कोई नई बात नहीं है, सोच कर आगे बढ़ने लगा, तो फिर उसके शरीर पर ध्यान गया, जिस पर गंदगी चिपक हुई थी। तब माथा ठनका तो इधर-उधर देखा, पता चला कि सीवर के मैनहोल को साफ करने की कोशिश की जा रही है। एक मशीन भी खड़ी है, वहां एक और युवक जो उस मैनहोल में घुसने की तैयारी कर रहा था, इसका मतलब है कि अकेले मशीन की बात नहीं कि वह इंसानों के इस गंद को बाहर निकाल सके। इसके लिए भी इंसान को ही कपड़े उतार कर अंदर घुसना पड़ता है। 

अब उस ठिठुरते हुए नौजवान, उम्र करीब 20-22 साल रही होगा को देखा। अंदर से कांप गया, कुछ यह सोच कर भी कि इस तरह के हजारों नहीं तो सैकड़ों नौजवान इस तरह मैनहोल के अंदर घुसकर जान गंवा देते हैं। कैसे जाती होगी, उस समय जान...। खैर...

मन हुआ कि जाऊं, उस युवक के पास और गले लग जाऊं। शायद उसे थोड़ी गर्मी का अहसास हो जाए।  उसका शुक्रिया अदा करूं कि वह मेरे जैसे न जाने कितने लोगों के गू को साफ कर रहा है, ताकि यह गू भरा पानी हमारे घरों के भीतर न लौटे। ताकि यह गू भरा पानी दुनिया के आठवें अजूबे ताज को देखने जा रहे किसी विदेशी की आंख में न चूभे, ताकि यह गू भरा पानी सड़क पर जमा होकर मेरे जैसे लोगों की गाड़ियों की रफ्तार न रोक ले। 

"लेकिन तू ऐसा कैसे कर सकता है?" मन में बुरी तरह से कब्जा जमाए एक ठाकुर ने आवाज लगाई। बस उस ठाकुर की जीत हुई और मैं चुपचाप वहां से  आगे बढ़ गया, देश के आधुनिक विकास की प्रतीक और शहरियों की जरूरत बन चुकी दिल्ली मेट्रो की सवारी करने...

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