बुधवार, 11 दिसंबर 2019

मर्द होने का भ्रम

बस में मेरे बगल में एक व्यक्ति हैं। उनके परिवार में किसी की मौत हो गई है। फोन पर उन्होंने किसी को सूचना दी, उससे मुझे यह आभास हुआ। उसके बाद से वे लगातार परेशान हैं। कभी जेब से रुमाल निकाल कर मुँह पौंछने लगते हैं। कभी आँखे। 

कभी जोर से खंखारने लगते हैं। उनकी हरकतों से लगता है कि वह फफक कर रोना चाहते हैं। लेकिन, अपने आप को रोक लेते हैं। बीच-बीच में फोन आता है, नॉर्मल हो कर बात करने की कोशिश करते हैं। रास्ते में हूँ, जल्दी पहुंचने की बात कहते हैं। फिर फोन रखकर अपने रुके हुए आंसुओं को जैसे भीतर ढकेलने की कोशिश करते हैं। आंख में कुछ गिर गया हो, यह जताने की कोशिश करते हैं। 

लगभग, हर मर्द के साथ यह होता है। उसका मर्द होने का भ्रम उसे रोने नहीं देता। बिलखने नहीं देता। गुबार निकलने नहीं देता। बार-बार उसका मर्द, जो एक दिखावे से कम नहीं है, उसे रोक देता है। बहुत आसान नहीं होता, मर्द होने के भ्रम को बनाये रखना। कुछ लोग इस भ्रम को बनाए रखने के लिए कठोरता की हदें पार कर देते हैं।

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