मंगलवार, 3 मार्च 2015

एक कविता

आज की बात पर बात होनी थी
कल की बात पर बात बिगड़ गई
हल होने थे जो मसले, मिसाल बन गए
उलझे उन पर ऐसे, कि तलवारें निकल गई
एक ईंट मस्जिद की उसने उठाई
एक ईंट मंदिर की मैंने चुराई
बनाना था घर, उनको जोड़ कर
तब तक खद्दर की कई बाजुएं चढ़ गई
जिस जमीं को सींच कर
खून से अपने
पालता था बच्चों का पेट
आज न जाने उस जमीन पर
किस सेठ की नजर लग गई
- राजू सजवान

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