आज की बात पर बात होनी थी
कल की बात पर बात बिगड़ गई
हल होने थे जो मसले, मिसाल बन गए
उलझे उन पर ऐसे, कि तलवारें निकल गई
एक ईंट मस्जिद की उसने उठाई
एक ईंट मंदिर की मैंने चुराई
बनाना था घर, उनको जोड़ कर
तब तक खद्दर की कई बाजुएं चढ़ गई
जिस जमीं को सींच कर
खून से अपने
पालता था बच्चों का पेट
आज न जाने उस जमीन पर
किस सेठ की नजर लग गई
- राजू सजवान
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