गुरुवार, 16 अगस्त 2012

आज सुबह लोकल ट्रेन से आते वक्‍त ओखला रेलवे स्‍टेशन पर एक बच्‍चे को पानी की थैलियों से भरे एक बैग को कंधे में रख कर इधर से उधर भागते देखा। बैग इतना भ्‍ारा था कि मुंह से आह निकल गई और चार पंक्तियां भी -

पीठ इसकी भी झुकी है
और उसकी भी
फर्क इतना है कि
उसके कंधों पर किताबों का बोझ है
और इसके कंधों पर
अपने परिवार का
उसका बोझ तो शायद उसका भविष्‍य बना दे
लेकिन इसका भविष्‍य
इस बोझ तले दबना तय है .....

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