आज सुबह लोकल ट्रेन से आते वक्त ओखला रेलवे स्टेशन पर एक बच्चे को पानी की थैलियों से भरे एक बैग को कंधे में रख कर इधर से उधर भागते देखा। बैग इतना भ्ारा था कि मुंह से आह निकल गई और चार पंक्तियां भी -
पीठ इसकी भी झुकी है
और उसकी भी
फर्क इतना है कि
उसके कंधों पर किताबों का बोझ है
और इसके कंधों पर
अपने परिवार का
उसका बोझ तो शायद उसका भविष्य बना दे
लेकिन इसका भविष्य
इस बोझ तले दबना तय है .....
पीठ इसकी भी झुकी है
और उसकी भी
फर्क इतना है कि
उसके कंधों पर किताबों का बोझ है
और इसके कंधों पर
अपने परिवार का
उसका बोझ तो शायद उसका भविष्य बना दे
लेकिन इसका भविष्य
इस बोझ तले दबना तय है .....
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