दिल्ली सरकार का दावा है कि दिल्ली में भूख से कोई नहीं मरता और दिल्ली पुलिस को स्पष्ट करना चाहिए कि पुलिस ने मौतों का कारण निकलने के लिए किस प्रणाली का इस्तेमाल किया, लेकिन दिल्ली सरकार शायद यह नहीं जानती कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम कर रहे नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो भी मानता है कि दिल्ली में भूख और प्यास से लोग मर रहे हैं।
सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत दिल्ली पुलिस द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना कि दिल्ली में 14 साल में भूख से 177 मौतों की खबर 'दैनिक जागरणÓ में प्रकाशित होने के बाद दिल्ली के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री हारुन युसूफ ने कहा कि दिल्ली में भूख से मौत हो ही नहीं सकती, क्योंकि जहां सरकार की अलग-अलग योजनाएं चल रही हैं, वहीं धार्मिक एवं स्वयंसेवी संगठन इतना भोजन बांटते हैं कि कोई भूख नहीं मर सकता। युसूफ ने यह भी कहा कि कोई नशेड़ी जिसे खाने से ज्यादा नशे की चिंता हो और वह भोजन खाना ही नहीं चाहता तो बात अलग है।
सरकार के इस बयान की हकीकत जांचने के लिए 'जागरणÓ ने अपराध के रिकार्ड का ब्यौरा रखने वाली सबसे बड़ी संस्था नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट को खंगाला तो वह और भी चौंकाने वाले निकले।
आरटीआई में दिल्ली पुलिस ने बताया था कि वर्ष 2008 में भूख से सात लोगों की मौत हुई, लेकिन एनसीआरबी के रिकार्ड बताते हैं कि भूखमरी और प्यास से दिल्ली में वर्ष 2008 में 73 मौत हुई और मरने वालों में पांच महिला भी शामिल थीं। इसी तरह दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2009 में भूख से मरने वालों की संख्या 20 बताई थी, लेकिन एनसीआरबी के मुताबिक इनकी संख्या 32 थी, जिनमें तीन महिला शामिल थी।
राष्ट्रमंडल खेल वर्ष 2010 में दिल्ली पुलिस के मुताबिक भूख से मरने वालों की संख्या 18 थी तो एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 39 मौतें भूखमरी और प्यास के कारण हुई। हालाकि 2011 में यह आंकड़ा कुछ गिरा और साल भर में भूखमरी से मरने वालों की संख्या सात रही।
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पीडीएस बंद हुआ तो बिगडेंगे हालात
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) पर काम कर रही संस्था लोक शक्ति मंच ने खाद्य आयुक्त को भेजे पत्र में कहा है कि राशन के बदले नगदी योजना शुरू होने से दिल्ली में हालात और बिगड़ेंगे। इस पैसे को घर का मुखिया कहीं और खर्च कर देगा या महंगाई बढऩे पर अनाज गरीबों की पहुंच से दूर हो जाएगा।
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