शनिवार, 11 अगस्त 2012

बुजुर्गों से छूट रही है आसमान की ओर बढ़ती दिल्ली की डोर



जमीन कम पड़ी तो दिल्ली आसमान की ओर बढऩे लगी है, लेकिन ऊध्र्वाकार विकास के इस नए फ्रेम में हम बुजुर्गों को जगह देना भूल गए। दिल्ली में बहुमंजिला इमारतों की तादात तो बढ़ रही है तो इनमें से ज्यादातर चार मंजिल तक के इमारतों में लिफ्ट नहीं है, इस कारण बुजुर्गों को अपने फ्लैटों में बंद होकर रहना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि इन इमारतों में लिफ्ट को लेकर कानून नहीं है, लेकिन दिल्ली का अनियोजित विकास बुजुर्गों की इस सुविधा की राह पर आड़े आ रहा है।
पश्चिम के शहरों से प्रभावित युवाओं को दिल्ली एनसीआर की यह बदलती छवि तो खूब भा रही है, लेकिन कोई लगभग 70 साल की वृद्धा कुसुम लता से पूछे कि तीसरी मंजिल पर रहना उनको कितना सुहाता है। वह कई-कई दिन तक अपने घर से बाहर नहीं निकल पाती। उनके जैसे बुजुर्गों को दिल्ली-एनसीआर का यह चलन सुहा कम, दर्द ज्यादा दे रहा है।
दिलचस्प यह है कि दिल्ली-एनसीआर के विस्तार और विकास की अगली सारी योजनाएं ऊध्र्वाकार ही हैं। दिल्ली के मास्टर प्लान-2021 में दिल्ली के ऊध्र्वाकार विस्तार की ही संभावनाएं जताई गई हैं।
टाउन प्लानर्स का कहना है कि बिल्डिंग प्लान में प्रावधान है कि 15 मीटर से ऊंची बिल्डिंग में लिफ्ट लगाना अनिवार्य है और कोई सोसायटी 15 मीटर से नीचे वाली बिल्डिंग में लिफ्ट लगाना चाहते हैं तो उसे रोका नहीं जाता, बल्कि डीडीए द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है। यह अलग बात है कि डीडीए की अपनी बहुमंजिला इमारतों में लिफ्ट नहीं है।
इसके अलावा लगभग 70 फीसद अनियोजित तरीके से बसी दिल्ली में यह नियम कारगर नहीं हैं। जितनी भी अनियोजित कालोनियां हैं, वहां फ्लोर-वाइज फ्लैट बन रहे हैं।  हाल ही में अर्थराइटिस फाउंडेशन आफ इंडिया (एएफआई) के अध्ययन में यह बात सामने आ चुकी है कि दूसरी मंजिल या उससे ऊपर रहने वाले बुजुर्ग कई कई दिन तक नीचे उतर नहीं पाते। इससे ये बुजुर्ग कई तरह की बीमारियों और अवसाद के शिकार हो रहे हैं।
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अर्थराइटिस फाउंडेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष एवं कैलाश अस्पताल के वरिष्ठ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशील शर्मा बताते हैं कि भूतल से ऊपर की मंजिल में रहना बुजुर्गों के लिए कष्टकारी होता है और जैसे जैसे उम्र बढ़ती है तो सीढिय़ों से उतरना-चढऩे के कारण घुटनों पर असर पड़ता है। बुजुर्गों के लिए तो भूतल पर ही रहना आसान होता है।
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डीडीए के प्लानिंग कमिश्नर रह चुके ए.के. जैन कहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर का ऊध्र्वाकार विस्तार तो अब जरूरत के साथ साथ मजबूरी बन गया है, लेकिन ऐसे में हम बुजुर्गों को नहीं भूल सकते और जहां तक संभव हो, लिफ्ट का प्रावधान किया जाना चाहिए।
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