गुरुवार, 2 अगस्त 2012

क्रांति या राजनीति

जो लोग यह कह रहे थे कि अन्‍ना आंदोलन किसी क्रांति का आगाज है। उन लोगों से फिर मैं यह कह रहा हूं कि भीड से किसी क्रांति की उम्‍मीद नहीं करनी चाहिए। जो भीड अन्‍ना के समर्थन में उमड रही थी, उससे कुछ खास उम्‍मीद कम से कम मुझे नहीं थी। क्रांति कैडर करते हैं और अन्‍ना को अभी कैडर बनाने का मौका ही नहीं मिला, जो शायद अब मिल सकता है। अगर राजनीतिक दल बनाया जाए तो कैडर बनेगा और कैडर से ही किसी तरह की क्रांति भी आ सकती है, जिस क्रांति की तैयारी अभी तक हो रही थी, उससे आप सरकार तो बदल सकते थे, लेकिन मानसिकता नहीं, कांग्रेस के बाद भाजपा आ जाती, जिसकी मानसिकता में कोई खास फर्क नहीं है, इस बदलाव के बाद भी आप कोई विकल्‍प नहीं दे पाते, परंतु अब यदि अन्‍ना और उनके समर्थक सफल रहते हैं तो कम से कम जनता को विकल्‍प तो देंगे ही, वरना तो ये लोग फिर से किसी बहरूपिये नेता के जिम्‍मे जनता को छोड कर चल देते या फिर किसी नये आंदोलन की तैयारी में जुट जाते ।
एक साथी ने सवाल किया कि बात तो आपकी सही है सर पर क्‍या गारंटी है अन्‍ना टीम को विकल्‍प देकर हमारा भरोसा नहीं टूटेगा, क्‍या आपको नहीं लगता कि अन्‍ना टीम अपनी राजनैतिक जमीन तैयार करने में जुटी है"
मेरा जवाब 
तो क्‍या बुराई है, अगर तुम्‍हे इतनी भी समझ नहीं है कि अन्‍ना टीम हमें धोखा देने वाली है तो यह तुम्‍हारी गलती है, वैसे भी अब तक जितनी बार भी वोट किया है तो बेवकूफी ही की है, अगर एक बार और कर दोगे तो तुम्‍हारा क्‍या जाएगा, इस बहाने दुश्‍मनों का चेहरा पहचाना जाएगा

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