शनिवार, 11 अगस्त 2012

दिल्ली में भूख से होती हैं कितनी मौतें!



उड़ीसा के कालाहांडी में भूख से मौत की खबरें तो आम हैं, लेकिन राजधानी दिल्ली में भूख से साल भर में 15 से 20 मौतों की खबर कभी सुर्खियां नहीं बनी। दिलचस्प यह कि देश के हुक्मरानों की नगरी दिल्ली में सरकार के साथ साथ कारपोरेट जगत के दिग्गजों और हजारों की संख्या में स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) हैं, लेकिन फिर भी लोग भूख से मर रहे हैं।
बेशक दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 14 साल में 177 मौतें भूख के कारण हुई हैं, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता एवं राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के सदस्य हर्ष मंदर कहते हैं कि दिल्ली में इससे कहीं अधिक मौतें भूख के कारण हो रही हैं। मंदर के मुताबिक उन्होंने एक शोध कराया और पाया कि हर रोज आठ-दस लोग दिल्ली में लावारिश मौत मर जाते हैं। इनका कोई भी रिकार्ड नहीं रखा जाता। इससे पता ही नहीं चल पाता कि इन लोगों की मौत किस कारण हुई।
शोध के तहत एक पुलिस थाना कश्मीरी गेट का रिकार्ड देखा तो पाया कि दुर्घटना, आत्महत्या या हत्या के कारण केवल आठ फीसद लोगों की मौत हुई, जबकि 92 फीसद मौतों को प्राकृतिक मौत बताया गया, जो भूख-प्यास, ठंड या गर्मी, तपेदिक जैसी बीमारी के कारण होती है। लेकिन इन्हें प्राकृतिक मृत्यु बता कर पुलिस रिकार्ड में दर्ज किया जाता है।
भूख मुक्त दिल्ली अभियान
 ऐसा नहीं है कि दिल्ली सरकार को इसका आभास नहीं है। दिल्ली सरकार ने वर्ष 2008 में एक अभियान शुरू किया था, नाम था 'भूख मुक्त दिल्लीÓ। यह अलग बात है कि इसी साल भूख से आठ और अगले साल 2009 में चार मौतें हुई। इस अभियान के तहत 'आपकी रसोईÓ नामक कार्यक्रम की शुरूआत की गई। इसके तहत गरीब बेसहारा लोगों को दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक मुफ्त भोजन दिया जाना शुरू हुआ। सरकार ने स्वयंसेवी संगठनों के सहयोग से दिल्ली के 12 जगहों पर 'आपकी रसोईÓ की शुरूआत की। दावा किया गया कि इससे गरीबों की भूख तो मिटेगी ही साथ ही भारी संख्या में कुपोषण के शिकार हो रहे गरीब बच्चों को कुपोषण से मुक्ति भी मिलेगी, लेकिन दिल्ली में गरीबों पर काम कर रही संस्था इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसायटी के इंदुप्रकाश सिंह कहते हैं कि इन केंद्रों की संख्या नहीं बढ़ाई और क्या दिन में एक बार खाना देना ही पर्याप्त है?

जन आहार योजना
दूसरी योजना सरकार ने वर्ष 2010 में जन आहार योजना शुरू की। मकसद, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को सस्ता, साफ सुथरा व स्वास्थ्यवर्धक भोजन 15 रुपये में उपलब्ध कराना था। इसमें चावल, रोटी, दाल, राजमा, कढ़ी, पूरी, हलवा आदि के साथ एक हजार कैलोरी का भोजना उपलब्ध कराया जाना था, लेकिन जागरण टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक मीनू में शामिल हरी सब्जी व सलाद जन आहार स्टालों पर कम ही देखने को मिलते हैं। लोगों को पतली दाल मिलती है और मौसमी सब्जियां नहीं होती। स्टालों पर रायता, खीर आदि मीनू में न होने के बाद भी अलग से बेचे जाते हैं। थाली में खाना कम होता है और मांगने पर अलग से पैसे चुकाने पड़ते हैं।
अब फूड बैंक की योजना
अब सरकार दिल्ली में फूड बैंक स्थापित करने की योजना पर काम कर रही है। दिल्ली फूड बैंक के लिए एसएमएस हेल्पलाइन नम्बर-58888 शुरू किया गया है, लेकिन अभी यह बैंक पका पकाया भोजन नहीं लेता। फूड बैंक के अधिकारी बताते हैं कि बैंक की स्थापना के पहले माह में 1500 परिवारों को राशन दिया गया है।

कहां जाता है बचा हुआ खाना
अभी दिल्ली में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि होटल, रेस्टोरेंट या समारोह के दौरान बचे हुए खाने को जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा सके। फूड बैंक के अधिकारी बताते हैं कि पके हुए भोजन को चार घंटे के भीतर तक लोगों तक पहुंचाना चुनौती है, लेकिन इस पर काम किया जा रहा है। होटल ही नहीं, बल्कि कारपोरेट कैंटीनों से संपर्क किया गया है और एक रूपरेखा तैयार की जा रही है ताकि जरूरतमंदों को समय पर खाना पहुंचाया जा सके। दिल्ली होटल महासंघ के अध्यक्ष अरुण गुप्ता कहते हैं कि होटलों में बचा हुआ खाना स्टाफ को दिया जाता है।

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