शनिवार, 11 अगस्त 2012

दिल्ली की गुलाबी तस्वीर के पीछे का सच


---कांग्रेस शासन काल में भूख और गरीबी से मारे गए 737 लोग





बेशक दिल्ली सरकार के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 76 हजार रुपये (लगभग 482 रुपये रोजाना) सालाना है, लेकिन इस गुलाबी तस्वीर के पीछे की सच्चाई यह है कि हर सप्ताह एक व्यक्ति देश की राजधानी में भूख या गरीबी से दम तोड़ रहा है। दिलचस्प यह है कि दिल्ली को अंतर्राष्ट्रीय शहर बनाने का दावा करने वाली कांग्रेस सरकार के 14 साल के शासन काल में 737 लोग भूख और गरीबी के कारण अकाल काल का ग्रास बन चुके हैं।
यह खुलासा हुआ है, सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत मिले एक जवाब से। सीलमपुर निवासी नैय्यर आलम ने दिल्ली पुलिस से पूछा था कि 1999 से लेकर अब तक कितने लोगों ने भूख से तंग होकर आत्महत्या की या भूख के कारण उनकी मौत हुई। आलम ने इसी तरह गरीबी के कारण आत्महत्या या मौत के आंकड़े भी पुलिस से मांगे।
पुलिस मुख्यालय ने सभी जिलों से ये आंकड़े मंगाए और जब जवाब जून 2012 में आलम को मिला तो वह चौंकाने वाला था। पिछले साल वर्ष 2011 में दिल्ली में भूख और गरीबी से मरने वालों की संख्या 62 थी। इसमें से 15 लोगों ने भूख और 47 लोगों ने गरीबी के कारण दम तोड़ा। वर्ष 2012, मार्च तक मरने वालों की संख्या 11 हैं।
इस तरह वर्ष 2010 में भूख से 18 और गरीबी से 40 लोगों ने दम तोड़ा। दिलचस्प बात यह है कि अक्टूबर 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के कारण दिल्ली पूरे विश्व में चर्चा का विषय बनी हुई थी और दिल्ली व केंद्र सरकार दिल्ली में हुए विकास का जमकर ढिंढोरा पीट रही थी, लेकिन इस साल भूख और गरीबी से हुई मौतों के बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा।
इससे पहले वर्ष 2009 में भी भूख और गरीबी से 60 लोग मारे गए थे। हालांकि वर्ष 2008 में यह आंकड़ा कुछ कम था और भूख गरीबी से मरने वालों की संख्या 39 रिकार्ड की गई। वर्ष 2005 और 2002 में सबसे अधिक 72 मौतें हुई, जबकि वर्ष 2001 में सबसे कम 37 लोगों की मौत हुई।
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पुलिस के आंकड़े संदेहास्पद
हालांकि नैय्यर आलम को उपलब्ध कराए गए पुलिस के आंकड़े भी पूरा सच नहीं हैं। उनको उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक इन 15 सालों में अकेले पश्चिमी जिले में 689 मौतें गरीबी और भूख से हुई, जबकि बाहरी जिले में 40 मौते, उत्तरी जिले में दो मौतें और पूर्वी जिले में चार मौतें हुई। अन्य जिलों के पुलिस अधिकारियों ने अपने जिले में भूख और गरीबी से मरने वालों की संख्या शून्य बताई है। आलम कहते हैं कि उन्हें संदेह पुलिस विभाग ने सूचना छिपाई है और पूरे आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए गए।
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पिछले 14 साल में भूख और गरीबी से हुई मौतें

वर्ष 2012 मार्च तक   11 मौतें

वर्ष 2011 में      62
वर्ष 2010 में      58
वर्ष 2009 में      60
वर्ष 2008 में      39
वर्ष 2007 में      52
वर्ष 2006 में      44
वर्ष 2005 में      72
वर्ष 2004 में      43
वर्ष 2003 में      44
वर्ष 2002 में      72
वर्ष 2001 में      37
वर्ष 2000 में      52
वर्ष 1999 में      55

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