शनिवार, 11 अगस्त 2012

थोड़ा सा चूके तो गायब हो जाती है आपकी रसोई



अप्रैल 2008 में शुरू हुआ भूख मुक्त दिल्ली अभियान गति नहीं पकड़ पाया है। यही वजह है कि इस अभियान के तहत अभी तक मात्र 13 आप की रसोई केंद्र ही चल रहे हैं। इन केंद्रों पर भी भूखे व्यक्ति की थोड़ी सी चूक उसे दिन भर के लिए भूखा रहने को मजबूर कर देती है। जागरण ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना की पड़ताल करने के लिए अलग अलग केंद्रों का दौरा किया।
अप्रैल 2008 में निजामुद्दीन बस्ती में पहली आपकी रसोई केंद्र का उद्घाटन किया था मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने। जागरण टीम जब खोजते खोजते इस जगह पहुंची तो कुछ पुराने लोगों ने बताया कि हां, दीक्षित ने यहीं एक कार्यक्रम में गरीबों को खाना खिलाने का वादा किया था। कुछ माह तक इस जगह एक गाड़ी आकर इलाके के गरीबों को खाना खिलाती थी, लेकिन चार-पांच माह बाद यह गाड़ी आना बंद हो गई और इलाके के गरीब अब कुछ दयावान लोगों के रहमो-करम पर अपना पेट भरते हैं।
 शाहदरा जीटी रोड पर पौने एक बजे पहुंची। वहां दर्जनों लोग आपकी रसोई वैन का इंतजार कर रहे थे। इन लोगों ने बताया कि वैन का कोई निर्धारित समय नहीं है, इसलिए कई दफा इधर-उधर होने के कारण उन्हें खाना नहीं मिल पाता। लगभग सवा दो बजे वैन आई और देखते ही देखते वहां गरीब लोगों की लाइन लग गई।
इन गरीबों को जो खाना दिया जा रहा था, उसे देख कर जागरण संवाददाता भौंचके रह गए। पीली दाल ऐसी कि डालते ही पत्तल पर फैल गई। चावल गीले, आलू की सब्जी और रोटी। लेकिन गरीबों के लिए यह अन्न भी कम नहीं था। थोड़ी देर में ही गाड़ी में आए लोग खाना बांट कर चलते बने। उन्होंने बताया कि खाना नजफगढ़ में बना कर यहां लाया जाता, यानी लगभग 40 किलोमीटर दूर से। संवाददाता ने जब पूछा कि खाना खराब नहीं होता तो वैन में आए लोगों ने बस इतना कहा कि खाना कभी खराब नहीं होता।
मंगोलपुरी आर -ब्लाक और आजादपुर स्थित रैन बसेरे पर पहुंची। लोगों ने बताया कि कि खाने की गुणवत्ता भी सही नहीं होती है। चावल रोटी व पतली दाल के अलावा कभी उन्हें कुछ नहीं मिलता है। खाने की गाडिय़ों के आने का समय का भी कोई निश्चित नहीं होता। गाडिय़ों के इंतजार में उन्हें काम छोडऩा पड़ता है।
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लोगों ने कहा कि
'दिन में जो खाना मिलता है, उसी में थोड़ा बचाकर रात के लिए रख लेते हैं। लेकिन जब दिन के खाने से कुछ नहीं बचता है तो रात में उनके सामने भूखे सोने के सिवा कोई चारा नहीं बचता है।Ó
मुकेश चौहान, मंगोलपुरी रैन बसेरा  में रहने वाला मजदूर  
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'कभी कभी काम नहीं मिलने के कारण उनके पास पैसे भी नहीं होते हैं, जिससे वह बाजार से खाना खरीद कर खाये। ऐसे में उसे कई बार भूखे पेट सोना पड़ता है। Ó
धर्मेंद्र, रोहिणी सेक्टर 26 के रैन बसेरा में रहने वाला मजदूर
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13 केंद्रों पर बंटता है खाना
मुख्यमंत्री के अतिरिक्त सचिव (भागीदारी प्रकोष्ठ) कुलानंद जोशी ने बताया कि अभी 13 केंद्रों पर आपकी रसोई के तहत गरीबों को खाना खिलाया जाता है। इसमें से सात इस्कॉन और छह अक्षयपत्रा संगठनों को सौंपे गए हैं। ये संगठन सीधे कारपोरेट समूह से एक साल की वित्तीय मदद के रूप में 14 लाख रुपये (जो एक केंद्र का खर्च है) ले लेते हैं और आज तक किसी भी केंद्र से किसी तरह की शिकायत नहीं आती है। सरकार की ओर से इन केंद्रों पर नजर रखी जाती है। उन्होंने कहा कि बारापुला एलिवेटिड रोड का निर्माण कार्य शुरू होने के कारण निजामुद्दीन बस्ती वाला केंद्र बंद किया गया है और प्रयास किए जा रहे हैं कि कुछ अन्य कारपोरेट समूहों को जोड़ कर आपकी रसोई केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए।

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