केंद्र सरकार दिल्ली के सुपर रिच यानी महा अमीर लोगों पर मेहरबान होने जा रही है। इन लोगों द्वारा खेती बाडी की जमीन पर बनाए गए डाक बंगला नुमा कोठियों को मंजूरी दी जा रही है। वैसे अगर कोई गरीब आदमी किसी प्रापर्टी डीलर झांसे में आ कर खेती बाडी की जमीन पर कोई छोटो मोटा प्लाट ले लेता है तो उसे अवैध बता कर गिरा दिया जाता है, लेकिन सालों से ऐसी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे मोटे सेठ को रियायत की तैयारी पूरी हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि गरीबों के आवास या हरियाली की फिक्र कर रहे एनजीओ की चुप्पी इस पॉलिसी में क्या खामिया हैं, इस पर मेरी एक रिपोर्ट
कई खामियां हैं फार्म हाउस पॉलिसी में
राजू सजवान, नई दिल्लीदिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा पास की गई फार्म हाउस पॉलिसी में कई खामियां हैं। यह पॉलिसी टाउन प्लानिंग के नियमों के मुताबिक नहीं हैं। दिलचस्प बात यह है कि डीडीए के कई अधिकारी इसके पक्ष में हैं, लेकिन वे खुलकर इसका विरोध नहीं कर पा रहे हैं।
अब तक दिल्ली में कम से कम ढाई एकड़ जमीन पर ही फार्म हाउस निर्माण की इजाजत थी। वह भी कुल क्षेत्रफल का एक फीसद। यानी यहां केवल चौकीदार या देखरेख के लिए छोटा सा कमरा बनाने की ही इजाजत थी, लेकिन पिछले दिनों हुई डीडीए की बोर्ड बैठक के बाद एक एकड़ जमीन पर 15 फीसद एफएआर की इजाजत देने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है। डीडीए ने इसे कंट्री होम का नाम दिया है।
टाउन प्लानिंग का नियम कहता है कि जब कृषि योग्य भूमि पर रहने की इजाजत दी जाती है तो उस भूमि का चेंज आफ लैंड यूज (भू उपयोग परिवर्तन) कराना होता है। दिल्ली के भवन उपनियमों के मुताबिक प्लाट का सबडिविजन भी नहीं होता। प्रस्तावित फार्म हाउस पॉलिसी के मुताबिक इस इलाके में नौ मीटर चौड़ी सड़कें होंगी, लेकिन किसी भी टाउन शिप में 18 मीटर चौड़ी सड़कें होनी चाहिए, ताकि वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट आसानी से आ जा सके।
जानकार बताते हैं कि फार्म हाउस पॉलिसी बनाने से पहले यह तय किया जाना चाहिए था कि इस इलाके में बिजली-पानी-सीवर जैसी सेवाएं कौन ओर कैसे देगा। टाउन प्लानिंग के नियम के मुताबिक किसी भी कालोनी में लगभग 40 फीसदी हिस्सा सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए होता है, इसमें रोड, सीवर, पानी, अस्पताल, पुलिस स्टेशन, अग्निशमन जैसी सेवाएं शामिल की जाती है।
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